मौनावलम्बन, चुप साधे रहना। मंजीर = पाँवों में पहनने का एक रुनझुनकारी गहना, नूपुर।
विपरीत रति में खूब जोर पड़ रहा है—जोरों के साथ विपरीत रति जारी है। वह धीरा समागम-रूपी युद्ध में डटी है। (अतएव, कमर की) किंकिणी शोर कर रही है, और (पाँवों के) नूपुर मौन पकड़े हुए (चुप) हैं।
नोट—विपरीत-रति में नायिका की कटि चंचल (क्रियाशील) है, इसलिए किंकिणी बज रही है, और पैर (जमे हुए) स्थिर हैं, इसलिए नूपुर चुप हैं।
बिनती रति बिपरीत की करी परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥३४१॥
अन्वय—पिय पाइ परसि बिपरीत रति की बिनती करी, अनबोलैं ही हँसि दियौ बुताइ ऊतरु दियौ।
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इसपर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुताकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए—चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति बाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥३४२॥
अन्वय—मेरे बूझत बाल तूँ कत बात बहरावति पिय-भाल बिंदुल लखि जग बिपरीत रति जानी।
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।