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बिहारी-सतसई
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वस्त्र हटा दिया गया, तो भी उसके शरीर की धुति में नायक की आँखों चौंधिया गईं, जिससे उसे नग्नता की लाज न उठानी पड़ी!)

लखि दौरत पिय-कर-कटकु बास छुड़ावन काज।
बरुनी बन गाढ़ै दृगनु रही गुढ़ौ करि लाज॥३३४॥

अन्वय—बास छुड़ावन काज पिय-कर-कटकु दौरत लखि लाज बरुनी गाढ़ैं बन दृगनु गुढ़ौं करि।

कर=हाथ। कटकु=सेना। बास=(१) वस्त्र (२) निवास स्थान। बरुनी= पलक के बाल। गाढ़े=सघन। दृगनु=आँखों। गुढ़ौ करि=किला बनाकर।

वस्त्र (रूपी निवास-स्थान या देश) छुड़ाने के लिए प्रीतम के हाथ-रूपी सेना को दौड़ते (ताबड़तोड़ वस्त्रहरण करते) देखकर (नायिका की) लज्जा बरुनी-रूपी सघन वन में (बने हुए) आँखों को किला बनाकर छिप रही— (समूचे शरीर से सिमटकर लाज आँखों में आ छिपी!)

नोट—अत्यन्त लज्जा से स्त्रियाँ आँखें बन्द कर लेती हैं। जबरदस्ती नग्न किये जाने पर स्वभावतः उनकी आँखें बन्द हो जाती हैं।

सकुचि सरकि पिय निकट तैं मुलकि कछुक तनु तोरि।
कर आँचर की ओट करि जमुहानी मुँह मोरि॥३३५॥

अन्वय—सकुचि पिय निकट तैं सरकि तनु तोरि कछुक मुलकि कर आँचर की ओट करि मुँह मोरि जमुहानी।

सकुचि=लजाकर। सरकि=सरककर, हटकर। मुलकि=मुस्कुराकर। तनु तोरि=अँगड़ाई लेकर। कर=हाय। जमुहानी=जँभाई ली, देह को ऐंठा। मुख मोरि=मुँह फेरकर।

(समागम के बाद) लजाकर प्रीतम के निकट से कुछ दूर हट, अँगड़ाई लेकर कुछ मुस्कुराई तथा हाथ और आँचल की ओट कर, मुख फेरके जँभाई ली।

सकुच सुरत आरंभ हीं बिछुरी लाज लजाइ।
ढरकि ढार दुरि ढिग भई ढीठि ढिठाई आइ॥३३६॥