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सटीक : बेनीपुरी
 

दिन) सूने घर में (उसे) पाकर (मैंने उसकी) बाँह पकड़ी। उस समय वह आँखें ललचौंही बनाकर 'नाहीं-नाहीं' करती हुई मेरे चित्त में गड़ गई—बाँह पकड़ते ही अभिलाषा-भरी आँखों से उसने जो 'नहीं-नहीं' की सो हृदय में गड़ रही है।

गली अँधेरी साँकरी भौ भटभेरा आनि।
परे पिछानै परसपर दोऊ परस पिछानि॥३२७॥

अन्वय—साँकरी अँधेरी गली आनि भटभेरा भौ। परस पिछानि दोऊ परसपर पिछाने परे।

साँकरी=तंग, पतली। भौ भटभेरा=मुठभेड़ हुई, टक्कर लड़ी। आनि=आकर। पिछाने=पहचाने। परस पिछानि=स्पर्श की पहचान से।

(नायिका नायक से मिलने जा रही थी और नायक नायिका से मिलने आ रहा था कि इतने ही में) पतली और अँधेरी गली में आकर (दोनों की) मुठभेड़ हो गई—एक दूसरे से टकरा गये। (और टकराते ही शरीर के) स्पर्श की पहचान से दोनों परस्पर पहचान गये—एक दूसरे को स्पर्श करके ही एक दूसरे को पहचान गया।

हरषि न बोली लखि ललनु निरखि अमिलु सँग साथु।
आँखिनु ही मैं हँसि धर्यौ सीस हियै धरि हाथु॥३२८॥

अन्वय—सँग साथु अमिलु निरखि ललनु लखि हरषि बोली न। आँखिनु मैं ही हँसि हाथु हियै धरि सीस धर्यौ।

ललन=प्यारे, श्रीकृष्ण। अमिलु=बेमेल, अनजान। हिय=हृदय।

संगी-साथियों को अपरिचित जान श्रीकृष्ण को देखकर प्रसन्न होने पर भी कुछ बोली नहीं। हाँ आँखों में ही हँसकर (अपना) हाथ (पहले) हृदय पर रख (फिर उसे) सिर पर रक्खा—(अर्थात्) हृदय में बसते हो, प्रणाम करती हूँ! (खासी सलामी दगी!)

भेटत बनै न भावतो चितु तरसतु अति प्यार।
धरति लगाइ-लगाइ उर भूषन बसन हथ्यार॥३२९॥