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सटीक : बेनीपुरी
 

देखिए। (उधर) घर के कोने में वह पीली चमेली के समान फूल रही है— पीली चमेली के समान देह वाली वह युवती आपकी प्रतीक्षा में आनन्द-विभोर हो खड़ी है।

नहि हरि-लौं हियरो धरौ नहि हर-लौं अरधंग।
एकत ही करि राखियै अंग-अंग प्रत्यंग॥३२२॥

अन्वय—नहि हरि लौं हियरो धरौ नहि हर-लौं अरधंग। प्रत्यंग अंग-अंग एकत करि ही राखियै।

हरि=विष्णु। लौं=समान। हियरो=हृदय में। हर=महादेव। अरधंग=आधा अंग। एकत=एकत्र। प्रत्यंग=प्रति अंग।

न तो विष्णु के समान (इस नायिका को लक्ष्मी की तरह) हृदय से लगाकर रक्खो, और न शिव के समान (इसे पार्वती की भाँति) अर्द्धाङ्गिनी (बनाकर रक्खो)। (वरन् इसके) प्रत्येक अंग को (अपने) अंग-अंग से एकत्र (सटा) करके ही रक्खो (इसे अपने में इस प्रकार लीन बना लो कि इसका अस्तित्व ही न रह जाय)।

रही पैज कीनी जु मैं दीनो तुमहिं मिलाइ।
राखहु चम्पक-माल लौं लाल हियैं लपटाइ॥३२३॥

अन्वय—मैं जु पैज कीनी रही, तुमहिं मिलाइ दीनी। लाल चम्पक-माल लौं हियैं लपटाइ राखौ।

पैज=प्रतिज्ञा। चम्पक=चम्पा। हिये=हृदय में।

मैंने जो प्रतिज्ञा की थी सी रह गई—पूरी हो गई—तुमसे (इस नायिका को) मिला दिया। अब हे लाल! इसे चम्मा की माला के समान अपने गले में लिपटाकर रक्खो।

रही फेरि मुँह हेरि इत हितु-समुहैं चितु नारि।
डीठि परत उठि पीठ की पुलकैं कहैं पुकारि॥३२४॥

अन्वय—मुँह फेरि इत हरि रही नारि चितु हितु-समुहैं डीठि परत पीठि की पुलक उठि पुकारि कहैं।