कोरि=करोड़। तऊ=तो भी। नागरि=चतुरा। दुरै न=नहीं दुरता, नहीं छिपता। चीकनौ=प्रेम। रुखाई=क्रोध।
करोड़ों यत्न करो तो भी हे सुचतुरे! प्रेम नहीं छिपता। आँखों की नई रुखाई ही—कृत्रिम रुक्षता (क्रोध) ही—हृदय की चिकनाहट—(स्नेहशीलता)— कहे देती है।
नोट—
प्रेम छिपाये ना छिपै जा घट परगट होय।
जो पै मुख बोलै नहीं आँख देति है रोय॥—कबीरदास
पूछैं क्यौं रूखी परति सगिबगि गई सनेह।
मनमोहन छबि पर कटी कहै कँट्यानी देह॥२८५॥
अन्वय—पूछैं रूखी क्यौं परति सनेह सगिबगि गई मनमोहन छबि परकटी, कँट्यानी देह कहै।
रूखी परति=अनखाती, कुपित होती। सगबगि गई=शराबोर हो गई, तल्लीन या मस्त हो रही। मनमोहन=श्रीकृष्ण। छबि पर कटी=रूप पर मुग्ध। कँट्यानी=कंटकित, रोमांचित।
पूछने से क्रोधित क्यों होती हो? स्नेह से तो शराबोर हो रही हो। श्रीकृष्ण के रूप पर लट्ट हुई हो, (यह बात तुम्हारी) रोमांचित देह ही कह रही है।
तूँ मति मानैं मुकुतई कियैं कपट चित कोटि।
जो गुनही तौ राखिये आँखिन माँहि अँगोटि॥२८६॥
अन्वय—कोटि कपट चित कियैं तूँ मुकुतई मति मानैं। जो गुनहीं तौ आँखिनु माँहि अँगोटि राखिये।
मुकुतई=मुक्ति, छुटकारा। चित=मन। कोटि=करोड़ों। गुनही=गुनहगार, दोषी, अपराधी। अगोटि=बन्द कर, कैद कर।
करोड़ों कपट मन में रखने से तू अपना छुटकारा न समझ—झूठमूठ मुझे दोषी बतलाने से मैं तेरा पिंड छोड़ दूँगा, ऐसा मत समझ। (हाँ,) यदि (सचमुच मुझे) गुनहगार समझती है, तो अपनी आँखों में मुझे कैद कर रख।
नोट—नायिका को किसी तरह नायक छोड़ना नहीं चाहता। अपने ऊपर किये गये आक्षेप या आरोप को वह पहले तो झूठ बतला रहा है, और सत्य