हे छबीले लाल! एक क्षण के लिए भी वह (नायिका) जबतक बातचीत नहीं करती तबतक ऊख, मधु और अमृत की प्यास भी नहीं आती—(ये सब पदार्थ स्वभावतः मीठे होने पर भी उसकी बोली की मिठास के इच्छुक बने रहते हैं, उसीके मधुमय वचनों से माधुर्य प्राप्त करते हैं।)
नोट—ऊख, महूष, और पीयूष (की उपमा) से नायिका के वचनों में क्रमशः मधुरता, शीतलता और प्राण-संचारिणी शक्ति का भाव व्यक्त होता है।
नागरि बिबिध बिलास तजि बसी गँवेलिनु माहिं।
मूढ़नि मैं गनिबी कि तूँ हूट्यौ दै इठलाहिं॥२६६॥
अन्वय—नागरि बिबिध बिलास तजि गँवेलिनु माहिं बसी तूँ हूट्यौ दै इठलाहिं कि मूढ़नि मैं गनिबी।
विलास=आमोद-प्रमोद। गँवेलिनु=गाँव की गँवार स्त्रियाँ। गनिबी=गिनी जायगी। हूट्यौ दै=गँवारपन दिखलाकर। इठलाहि=मस्त बनी रह।
ऐ नगर में बसनेवाली सुचतुरा स्त्री! नाना प्रकार के (नगर-सुलभ) आमोद-प्रमोद को छोड़कर तू इन गाँव की गँवार स्त्रियों में आ बसी है (इसलिए अब) तू भी (उन्हींके समान) गँवारपन दिखलाकर इठला—आनन्द प्रकट कर; नहीं तो (इन गँवारिनों द्वारा) मूर्खाओं में गिनी जाओगी—गँवारिन समझी जाओगी।
पिय मन रुचि हैबौ कठिन तन-रुचि होहु सिंगार।
लाखु करौ आँखि न बढ़ै बढ़ै बढ़ाऐं बार॥२६७॥
अन्वय—पिय मन रुचि ह्वैबौ कठिन सिंगार तन रुचि होहु। लाखु करौ आँखि न बढ़ै बढ़ाऐं बार बढ़ै।
तन-रुचि=शरीर की शोभा। बार=बाल,केश।
प्रीतम के मन रुचि (पैदा) होना कठिन है——प्रीतम को अपनी ओर आकृष्ट कर लेना कठिन है। सिंगार से (तो केवल) शरीर की शोभा बढ़े। लाख भी (प्रयत्न) करो, किन्तु आँखे नहीं बढ़तीं। (हाँ,) बढ़ाने से बाल (अवश्य) बढ़ जाते हैं।