बिहारीरनाकर ५५ स्याम रंग ( श्याम रेंग )—यह पद यहाँ श्लिष्ट है । इसका एक अर्थ 'श्रीकृष्णचंद्र के अनुराग में होता है, और दूसरा अर्थ काले रंग में' ॥ उजलु ( उज्ज्वल ) इस शब्द के भी यहाँ दो अर्थ हैं—(१) निर्मल पवित्र I(२ ) श्वेत ॥ ( अवतरण ) किसी भक्ति की उक्ति है ( अर्थ ) इस अनुरागी ( १. प्रेमी ।२. लाल रंग वाले ) चित्त की [ विलक्षण ] व्यवस्था कोई समझ नहीं सकता। ज्यों ज्यों यह श्याम रंग में डूबता है, त्यों त्यों उज्ज्वल होता है । विलक्षणता यह है कि काले रंग में डूबने से वस्तु काली होती है, पर चित्त श्याम रंग में ज्य जयाँ डूबता है, स्य स्य उज्ज्वल होता है । ४ बिप सौति देखत दहें अपने हिय हैं’, लाल । फिरति सबैंड में डहडही हैं मरगजी माल ॥ १२२ ॥ बिय = अन्य, और ॥ डहडही=प्रफुल-वदन ॥ मरगजी = मसली हुईमुरझाई हुई ॥ ( अवतरण ) प्रेमगर्विता नायिका की दशा सखी नायक से निवेदित करती है ( अर्थ )–हे लाल ! अन्य सौतों के देखते हुए [ आपने जो ] अपने हृदय से [ उतार कर] दी, उसी मसली हुई माला [के पाने के गर्भ से वह ] सबों में प्रफुलबदन घूमती है ! y छला छबीले लाल कौ नवल नेह लहेि नारि । बति, चाहति, लाइ उर पहिरति, धरति उतारि ॥ १२३ ॥ ( अवतरण )—पूर्वानुरागिनी नायिका की प्रेमदशा का वर्णन सखियाँ आपस में करती हैं ( अर्थ )-नए नए स्नेह [ की लगन ] में छबीले ( सुंदर ) लाल का छल्ला पा कर T यह ]ली [ उसको ]चूमती है, [ बड़े प्रेम से देती है, हृदय में लगा कर पहन लेती है, [ और अंत को इस भय से कि कोई देख न ले ] उतार धर लेती है । कर [ यल से ] नित संसौ सौ पचढ) मनौ घु इहैिं अर्जुमातु । बिरहअगिनि-लपटलु सकतु झपटि न मीसचाऐं॥ १२४ ॥ संस =श्वासाप्राण ॥ हंसहंस पक्षी ॥ अनुमानु= अनुमान किया हुआ कारण ॥ मीड-मृत्यु ॥ सचानु ( संचान ) =एक प्रकार का बा की जाति का पक्षी ॥ ( अवतरण ) सखी नायक से नायिका का विरह निवेदन करती है ( अर्थ ) [ विरह दुःख से उसकी ऐसी दशा हो रही है कि अब मरी और तय मरी १. पिय, तिय (२ ), पिय (४, ५ )। ३. की (४ )। ३. डहडही संबद्ध मैं ( २ )। ४. वहै (२ ), वह ( ४ )। ५. लै ( ४ )। ६ . चूमति ( २ ) । ७. रहतु (२ )। ८, उनमान ( २ )। ई• सके (२ ) । १०. सिचान ( १, २, ५ ) ।
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