पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/९६

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बिहारी-रत्नाकर

बिहारी-रक्षाकर ( अवतरण )—उत्कंठिता नायिका सखी से कहती है ( अर्थ )-नभ की लाली ने रात्रि चाल डाली ( रात्रि की कालिमा में अरुणोदय का प्रकाश मिश्रित हो गया, अर्थात् झलफलाह होने लगा ), [ और ] चटकाली ( चटक की पंक्ति ) ने ध्वनि की ( चिड़ियाँ बोलने लग ), [ पर ] वनमाली ( श्रीकृष्णचंद्र ) [ अभी तक ] नहीं आए। हे अली ( सखी ), [ है उन्होंने कहाँ] अनत ( अन्यत्र ) ज्ञात होता के रति पाली ( प्रेम का पालन किया ) ॥ - १७-. सोवत सपे* स्यामघनु मिलिहिलि हरंत बियोए । तब ही टरि कित हूँ गईनदेौ नींद जोए ॥ ११६ ॥ मिलिहिलि = आलिंगनादि कर के ॥ नींद = निंदा करना ॥ ( अवतरण ). -नायिका ने नायक को स्वप्न में देखा, पर उसी समय उसकी नींद खुल गई । श्चातः वह नींद को निंदा करने क योग्य कहती है ( अर्थ )-[ हे सखी, ] सोते हुए ( सोते समय ) स्वप्न में घनश्याम हिलामिल कर f मेरा ] वियोग ( वियोगदुःख ) हर रहे थे । [ पर ] उसी समय [ नींद ]टल कर कहीं चली गई ।[ अतः अब ]नींद को भी बुरा कहना (आहितकर समझना उचित है ।[ निद्रा की चाह तो केवल इसी निमित थी कि स्वप्न में प्रियतम का संयोग प्राप्त हो। पर जब ऐसा अवसर प्राप्त हुआ, तो निद्रा भी टल गई । अतः अब वह भी खान-पानादि की भाँति दुःखद ही है ]। संपति केसदेस नर नवैत, दुदुनि इक यानि । विभ सतर कुचनीच नर ;नरम विभव की हानि ॥ ११७ ॥ संपति ( संपात्त ) = भरापुरा होना । केश के पक्ष में इसका अर्थ बाढ़तथा नर के पक्ष में धन, होता है ॥ सुदेस ( सुदेश )= श्रेष्ठ स्थान वाले, उच्च १द वाले ॥ नवत = केश के पक्ष में इसका अर्थ नीचे की ओर चलते हैं, और नर के पक्ष में नम्र होते हैं, है ॥ बानि = प्रकृति ॥ बिभव =वैभव । देश के पक्ष में इसका अर्थ बाढ़, तथा नर के पक्ष में ऐश्वर्यहै । ( अवतरण ) यह कवि की प्रास्ताविक उ िहै ( अर्थ )-केश, [ तथा ] श्रेष्ठ पद वाले नर संपत्ति में नवते हैं मैं दोनों की [ यह ] पक [ ही ] प्रकृति है । [ पर कुिच[ तथा ]नीच नरविभव में तनेने [ और ] विभव की इानि में नरम ( १. सुजलुले। २. दीन ) [ हो जाते हैं ]। 988 कहत सी कवि कमल से, मो मत नैन पग्ख़ाड । नतरुक कत इन विय लगत उपज विर कृसाड ॥ ११८ ॥ १. अपनै (२, ४ )। २ . हिलिमिति ( ५ )। ३ रहत (२ )। ४, नींदड (४ )। ५ , नमत (५ )