पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८१

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बिहारी-रत्नाकर

३८ बिहारी-राकर ( अवतरण ) - नायिका की क्रियाविवश्धता का वर्णन सही सत्र से करती है ( अर्थ )[ देखायह ]कंज-नयनी स्नान किएबैठी [ अपने ]बाल सुलझा रही है, [ और इसी ब्याज से अपने] बालों तथा ढंगलियों के बीच से दृष्टि दे ( डाल ) कर नंदकुमार को देख रही है । -->8858 पावक सो ' नयनैनु ल जावकु लाग्य भाल । मुर्सी रु होहुगे नेंके मैं , मुकुर बिलोकौ, लास ॥७९ ॥ पावक = अग्नि ॥ जावक = महावर ॥ मुकुरु =मुकरने वाले ॥ मुकुरु = दर्पण ॥ ( अवतरण )--खडिता नायिका नायक के भाल मैं महावर लगा देख कर कहती है- ( अर्थ ) –हे लाल[ तुम्हारे ] भाल में लगा हुआ महावर [ मेरे]नयनों में पाठक सा लगता है । [तुम अभी ] दर्पण देख लो, [ नहाँ तो] बैंक में ( थोड़ी देर में , जब यह मिट जायगा तो ) मुकर जाओगे ( कहने लगोगे कि मेरे भाल में महावर लगा ही नहीं था ) ॥ रह ति न रन, जय साहिमुख लवि, लालू की फौज। जाँचि निरवर च' लै लाख की मौज ॥ ८० ॥ लाख—यह शब्द इस दोहे में दो बार चाया है, और दोनों ही स्थानों पर टीकाकारों ने इसे संख्यावाचक लाख का बहुवचन माना है । हमारी समझ में, दोहे के पूर्वार्द्ध में, यह किसी का नाम है, जिस- की सेना जयशाह की सेना देख कर भागी थी, और उत्तरार्द्ध में यह संख्यावाचक लाख का बहुवचन है । दोनों स्थानों में इस संख्यावाचक मानने से दोहे में एक प्रकार का पुनरुक्ति दोष आ जाता है । अब रह गई। यह बात कि ‘लाख' कौन व्यक्ति था, इसका संतोषजनक पता नहीं मिलता । संभवतः वह कोई सामान्य राजा, श्रथवा किसी राजा का सेनापति, था । इसी लिए उसके नाम का पता इतिहास से नहीं चलता । । मथासिरुल उमर' से एक लक्खी जादो का पता लगता है, जो दक्खिन में दौलताबाद सरकार के संदखेर का देशमुख, ऑौर नि ामशादी राज्य का एक बड़ा मंसबदार था । यही लक्खी जादो छत्रपति महाराज शिवाजी का नाना था । शाह जहाँ के राज्यकाल के आरंभ में मिर्जा राजा जयशाह खानजहाँ लोदी के साथ दक्खिन में थे । संभव है, उस समय उनसे और लक्खी जादो से सामना हुआ हो । इसके अतिरिक्त उन्हीं दिन, आगरे के निकट, महवन के जाटों ने बहुत सिर उठाया था और मिर्जा राजा जयशाह, दक्खिन से लौटने पर, कासिम त्राँ के साथ उनका दमन करने के निमित्त भेजे गए थे । यह भी बहुत संभव है कि उन जार्टी के किसी सरदार का नाम लाखनुसिंह रहा हो ॥ निराखर ( निरक्षर ) विना पढ़ालिखा अर्थात् मूर्स ॥ मौज मौज आरबी भाषा में तरंग तथा लहर को कहते हैं । भाषा में इसका प्रयोग उमंग अथवा उत्साह के अर्थ में होता है । श्रीर, उमंग से दिए हुए दान के अर्थ में भी कवि इसका प्रयोग करते हैं । इस दोहे में यह इस पिछले ही अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । १ से ( ४ ), सम ( ५ )। २. लोचन (४ )। ३. लसे (४ )। ४. मुकरू (१ ), मुकर (२ )।५. विलो राहु (४)। ६ लाखुन ( ५ ) । ७. हू (४ )