पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/८०

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बिहारी-रत्नाकर

बिहारीलाकर ३७ जौ न गतिपिय मिलन की भूरि मुकंतितुंह न । जौ लहिये ढंग सजनतौ धरक नरक हूँ की न ॥ ७५ ॥ जुगति ( युक्ति )= उपाय ॥ सजन ( सज्जन अथवा स्वजन )=अपना प्यारा ॥ धरक = डर ॥ ( अवतरण )उद्ध वजी से गोपियों का वचन- ( अर्थ )- यदि [ मुक् ि] प्रियतन-प्राप्ति की युक्ति नहीं है ( अर्थात् प्रियतम-प्राप्ति की युक्ति के अतिरिक्त कोई और वस्तु है ), [ तो हमने ऐसी ] मुक्ति के मुंह में धूल झोंकी ( अर्थात् ऐली मुक्ति से हम बाज़ आई ): [ और ] यदि प्रियतम संता में प्राप्त हो, तो [ हमको ] नरक की भी धड़क नहीं है । चमक, तमक) हसी, ससक, मसक झपट, लानि। ए जिटेिं रति, सो रति मुकेति; और मुति पुति हानि ॥ ७६ ॥ चमक =चौंकें, अंगों को एकाएकी, शीघ्रता से, चंचल करना ॥ तमक = उत्तेजित होना ॥ खसक = सिसकी ॥ मसक= अंगाँ को दबाना, मर्दन करना ॥ ( अवतरण )–कोई कामी रत्ति की प्रशंसा करता है. ( अर्थ ) जिस रति में चमक, तमक इत्यादि [ भाव ] हों, वह रति [ ही ] मुक्ति ( परमानंददायिनी ) है । आपर मुक्ति [ तो ] आति हानि ( पूर्ण विनाश ) [ मा] है। - मोड़ साँ तजि मोड, दृग चले लागि उहैिं गैल । छिनई बाइ छबि -गुरंडरी छले छबी झेल ॥ ७७ ॥ गैल मार्ग । इसका प्रयोग साथ के अर्थ में भी होता है ॥ गुरडरी = गुड़ की डली ॥ ( अवतरण )-पूर्वानुरागिनी नायिका का वचन सखी से ( अर्थ )–क्षण मात्र छधि-पी गुड़ की डली बुझा कर [ उस ] छबील जेल के द्वारा जुले ( ठगे ) गए [ मेरे] दृगमुझसे भी मोह छोड़उसी की गैल ( साथ) लग कर चले ॥ एक वशीकरणप्रयोग में गुड़ की डली अभिमंत्रित कर के काम में लाई जाती है । यह जिसको खिका अथवा बुझा दी जाती है, वह खिलाने अथवा छआने वाले के वशीभूत हो कर उसके संग हो वेता है । यह प्रयोग प्राय: ठग लोग करते हैं । कं-नयमि मंजनु किए, बैठी ब्यौरति बार । कचछंगुरीविच दीटिं है, चिरैवति नंदकुमार ॥ ७८ ॥ मंजडु =स्नान ॥ ब्यौरति = सुलझाती है ॥ कच = बाल ॥ १- जुर्मति ( ४ )। २. मुक्कृति (४ ) । ३. रति (४ ) । ४. गरुड़ की (५ )। ५. छरे (२ ) । ६ . मंज करि खंजन नयनि ( २ )। ७. चितवत (२, ४, ५ )।