पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/७८

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बिहारी-रत्नाकर

बिहारीराकर से ॥ ताफतारंग = ताफ़्ते के रंग वाली, अथवा ताकता की भाँति ताक़ता एक प्रकार का रेशमी कपड़ा होता है, जिसका ताना और रंग का तथा बाना और रंग का होता है । दोनों रंगों के मेल से उसमें दोनों रंग की झलक लहराती है । यह शब्द फ़ारसी भाषा का है । भारती भाषा में इसको धूपछाँह कहते हैं । ( अवतरण )नायिका की वयःसंधि का वर्णन सखीद्वारा नायक से, अथवा नायकद्वारा स्वगत ( अर्थ ) [ अभी उसके शरीर में से 1 शिशुता ( लड़कपन ) की झलक नहीं छूटी है ( लड़कपन तो चला गया है, पर उसकी आभा रह गई है ), [ और ]जोबन अंग में झलक आया है ( जोबन आया तो नहीं है, पर आभा देने लगा है )। दोनों [ झलकों ] से मिल कर [ उसकी ] देश में ताकत के रंग की दीप्ति दपिती ( चमकती ) है । कब कौ टेरतु दीन रखें, होत न स्याम सहाइ । तुम लागी जगतगुरुजगनाइक, जगवाइ ॥ ७१ ॥ जगयाइ—संसार की वायुअर्थात् संसार का बुरा प्रभाव ॥ ( अवतरण )- इस दोहे में भी बिहारी ने श्रीकृष्णचंद्र को उलाहना देते हुए जगत् के रंग- पर कटाक्ष किया है ( अर्थ )-डे श्याम [मैं ] कब का ( बहुत समय से ) दीन रट ( दीनता से भरी हुई रट ) से [ तुमको 1 टेर ( पुकार) रहा हूँ, [ पर तुम ] सहाय नहीं होते। [ शात होता है। कि ] तुमको भी, हे जगढ़हरु ! जगन्नायक ! जगत् की हवा ( प्रभाव ) लग गई है [ अर्थात् निर्दय संसारनिवासियों का प्रभाव तुम पर भी पड़ गया है, यद्यपि यह बात न होनी चाहिए थी। क्योंकि गुरु तथा नायक का प्रभाव शिष्यों तथा सामान्य जनों पर पड़ना चाहिए, पर यह उलटी बात हुई कि उनका प्रभाव तुम, जगदुरु तथा जगन्नायक, पर पड़ा ] ॥ सकुचि न रहिं, स्याममुनि ए संतरौहैं बैन । वेत रच चित कहे नेहनर्धाँहैं नैन ॥ ७२ ॥ सतरौहै = तनेने, , रोषमरे ॥ रचौह =रचने पर माया हुआा, अनुराग की ओर ढला हुथा ॥ नेहृहै = स्नेह से चंचल हुएस्नेहभाव उदय होने के कारण एकटक पृथ्वी की ओर देखना छोड़ कर चंचलता से, बीच बीच में , नायक की ओर जाते हुए ॥ ( अवतरण ). मानिनी नायिका को मनाते मनाते नायक कुछ दुखी सा हो गया है । सखी, यह सोच कर कि वह कहीं विशेष दुखी हो कर चला न जाय, उसका उस्साह बढ़ाने तथा नायिका को हंस देने के निमित्र यह परीक्षा कहती है। , रूस कर मुंह फुलाए हुए बैठे मनुष्य से, उसे हँसा देने के लिए लोभ प्रायः कहते हैं कि यह देखोअब नाक पर हँसी आई, और ऐसे वाकाँ से वह बहुध हैं भी देता है। ( अर्थ ) के घनश्याम, [ आप इसके ] ये स त: वचन सुन कर संकुचित न हो रहिए ( निराश हो कर मनाना छोड़ न बैठिए )। [ देखिएअब उसके ] नेह से नचौहें ९रत (४ ) ।२० नायक (४, ५ )। ३. रिसरौहै" (२ ) ।