बिहारीरताकर ३१ ( अबतरण )कुलटा नायिता के कोयाँ मैं कामदेव की झलक तथा उपपति से मिलने का चाव लक्षित कर के सखी परिहासपूर्वक कहती है ( अर्थ ) आज [ तेरे] लोने लोचनों के कोयों से [ यद्यपि नायक से मिलने का चाव तो प्रकट होता है, पर यह ] नह" लक्षित होता कि किस बेचारे ( दया पात्र ) पर तु' कृषा करनी है, [ और किस पर कामदेव प्रसन्न हुआ है । - ‘8-8 सीतलता मुबास कौ घंटे में महिमामूरु। पीनस वाऐं जौ तज्य सो जानि कपूरु ॥ ५६ ॥ मूरु ( मूल )=जड़, मूलधन ॥ पीनस वारें =पीनस रोग वाले ने । पीनस एक नासारोग विशेष है, जिससे रोगी को गंध का अनुभव होना रुक जाता है ॥ सोरा ( शोरा ) : भट्टी में से निकाला हुया एक खारा पदार्थ ॥ ( अवतरण /कवि की प्रास्ताविक उकि है कि गुण के न जानने वाले के निरादर से गुण्णी के गुण की महिमा नहीं घटती ( अर्थ ) यदि पीनस रोग वाले ने कपूर को शोरा समझ कर तज दिया है ( प्रहण नहीं किया है ), [ तो उसकी ] सीतलता और सुगंध की महिमा का मूल नक्ष घटता ॥ काँगद पर लिखत न बनत, कहत संद लजात। कहिहै सडु ते हिय मेरे हिय की बात ॥ ६० ॥ ( अवतरण ) प्रोषितबंतिका नायिका ने पत्र में अपने विरह का कुछ वृत्तांत निवेदित कर के, यह बात जताने के लिए के जो कुछ लिखा गया है, उससे विरहवयथा की पूर्ण व्यवस्था विदित नहीं हो सकती, अंत मैं यह दोहा लिख दिया ( अर्थ )-[ कंप, स्वेद, आभू इत्यादि के कारण ] काग़ज़ पर [ तो विरहवृत्तांत ] लिखते नहीं बनता[ और ] संदेश [ रूप से उस वृत्तांत को ] कहते ( अर्थात् किसी को दूतरूप से तेरे पास भेजने के निमित्त उससे अपनी मार्मिक दशा कहते ) [ हृदय ] लजाता है। [ अतः में यही लिख कर संतोष करती हूं कि यदि तू विचार करेगा, तो ] तेरा हृदय मेरे हृदय की सब बातें" [ तुझसे ] कह देगा ( अर्थात् अपने हृदय की व्यथा से तुझको मेरे हृदय की सच्ची दशा का अनुमान हो जायगा ) ॥ --28 बंधु भए का दीन के) को तारथौ, रघुराइ । तूठे तूठे फिरत हौ झूठे बिरद कह ॥ ६१ ॥ ( अवतरण )-—भ का वक्र वचन भगवान् से १ की ६५)। २. ज्य (२ )। ३: कागर (१)।४. बनै (४, ५ ) ५. जूठे (२ )। ६ जुलाई (२ )।
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बिहारी-रत्नाकर