पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/५४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११
बिहारी-रत्नाकर

________________

बिहारी-रत्नाकर खरी= बहुत, बड़ी, अत्यंत ।। पातरी= पतली, सुकुमार अर्थात् जिस पर किसी बात का प्रभाव शीघ्र पड़े । ‘पातरी कान की' = कान की पतली अर्थात् किसी बात को सुन कर, विना विचारे, उस पर शीघ्र विश्वास कर लेने वाली । इस विशेषण से नायिका का अप्रौढ़ता व्यंजित होती है । बहाऊ= बहा देने के योग्य, अथवा बहा देने वाली, अर्थात् नष्ट करने वाली ॥ अक ( अर्क )= मदार ।। रली= आनंद, विहार, सुख ॥ | ( अ इतर )—सध्या नायिका ने, नायक को अन्यत्रो रत सुन कर, मान किया है। सखी उसको समझाती है ( अर्थ ) -[ तू ] कान की बड़ी पतली है। [ यह तेरी ] कौन (किस अर्थ की अर्थात् बहुत निकम्मी ) वहाऊ( बहा देने के योग्य अथवा तुझको नष्ट करने वाली ) वान (प्रकृति) है [ कि तु विना विचार किए सबकी बातों पर विश्वास कर लेती है ] । हे अली ( सखी), [ तू अपने] जी मैं [ यह बात ] जान ले ( निश्चित कर ले ) [ कि ] अली ! भ्रमर) मदार की कली से रली ( विहार ) नहीं करता ।। पिय-विठुरन कौ दुसहु दुखु, हरषु जात प्यौसार ।। दुरंजोधन लें। देखियेति तर्जत प्रान हैं हि बार ॥ १५॥ प्यौसार ( पितृशाला ) = बाप के घर, नैहर ॥ दुरजोधन ( दुर्योधन ) = कौरवपति धृतराष्ट्र का पुत्र । उसको शाप था कि जब उसको हर्ष तथा शोक, दोनों एक साथ ही ब्यापें गे, तब उसकी मृत्यु होगी । एक ऐसे ही अवसर पर उसके प्राण छूटे थे । देखियति = देखी जाती है । इह वार= इस बार अर्थात् अन की बार नैहर जाते समय ।। ( अवतरण )पहिले तो नायिका मुग्धा थी, अतः उसे नैहर जाते समय नायक-वियोग का दुःख नहीं होता था । पर अब वह मध्यावस्था को प्राप्त हो रही है, अतएव इस बार उसको नैहर जाने के हर्ष के साथ ही स थ नायक के विछोह का दुःख भी व्याप्त हो रहा है, अर्थात् उसको हर्ष तथा दुःख एक साथ ही हुए हैं, जिससे उसके प्रण बढ़ संकष्ट में पड़े हुए हैं। उसकी इसी दशा का वर्णन सख सखी से करती है ( अर्थ )-नैहर जाते [ समय एक तो इसको नैहर वालों की दर्शन संभावना का ] हर्ष है, [ और दूसरे ] प्रियतम से बिछुड़ने का दुःसह दुःख है । [ अतः ] इस बार [ की जवाई में यह ] दुर्योधन की भाँति प्राण तजते समय की दशा में देखी जाती है । झीनै पट मैं झुलेमुली झर्लकति ओप अपार । सुरतरु की मँनु सिंधु मैं लसात सपल्लव डार ॥ १६ ॥ कुलमुली–इस शब्द का अर्थ, कृष्ण कवि को छोड़ कर, सभी टीकाकारों ने कर्ण-भूषण विशेष, जिसको १. दुञ्जधन ( २ ), दुजोंधन ( ५ ) । २. देखियत ( २ ), देखिए ( ५ ) । ३. तजति ( ४, ५ )। ४. जिहि (२ ), एहि (४) । ५. झलमली (५)। ६. झलकत (४) । ७. जनु (२ )। ८. लसी (१,४), लस (५ )।