खरी = बहुत, बड़ी, अत्यंत॥ पातरी = पतली, सुकुमार अर्थात् जिस पर किसी बात का प्रभाव शीघ्र परे। 'पातरी कान की' = कान की पतली अर्थात् किसी बात को सुन कर, बिना विचारे, उस पर शीघ्र विश्वास कर लेने वाली। इस विशेषण से नायिका की अप्रौढ़ता व्यंजित होती है॥ बहाऊ = बहा देने के योग्य, अथवा बहा देने वाली, अर्थात् नष्ट करने वाली॥ आक (अर्क) = मदार॥ रली = आनंद, विहार, सुख॥
(अतिरण)—सध्या नायिका ने, नायक को अन्य नई स्त्री रत सुन कर, मान किया है। सखी उसको समझाती है—
(अर्थ)—[तू] कान की बड़ी पतली है। [यह तेरी] कौन (किस अर्थ की अर्थात् बहुत निकम्मी) वहाऊ (बहा देने के योग्य अथवा तुझको नष्ट करने वाली) बान (प्रकृति) है [कि तू बिना विचार किए सबकी बातोँ पर विश्वास कर लेती है। हे अली! (सखी), [तू अपने] जी मेँ [यह बात] जान ले (निश्चित कर ले) [कि] अली (भ्रमर) मदार की कली से रली (बिहार) नहींँ करता॥
प्यौसार (पितृशाला) बाप के घर, नैहर॥ दुरजोधन (दुर्योधन) = कौरवपति धृतराष्ट्र का पुत्र। उसको शाप था कि जब उसको हर्ष तथा शोक, दोनोँ एक साथ ही व्यापैँगे, तब उसकी मृत्यु होगी। एक ऐसे ही अवसर पर उसके प्राण छूटे थे॥ देखियति = देखी जाती है॥ इहि यार = इस बार अर्थात् अब की बार नैहर जाते समय॥
(अवतरण)—पहिले तो नायिका मुग्धा थी, अतः उसे नैहर जाते समय नायक-वियोग का दुःख नहीँ होता था। पर अब वह मध्यावस्था को प्राप्त हो रही है, अतएव इस बार उसको नैहर जाने के हर्ष के साथ ही साथ नायक के विछोह का दुःख भी व्याप्त हो रहा है, अर्थात् उसको हर्ष तथा दुःख एक साथ ही हुए हैँ, जिससे उसके प्राण बड़े संकष्ट मैँ पड़े हुए हैँ। उसकी इसी दशा का वर्णन सखी अपनी सखी से करती है—
(अर्थ)—नैहर जाते [समय एक तो इसको नैहर वालोँ की दर्शन संभावना का] हर्ष है, [और दूसरे] प्रियतम से बिछुड़ने का दुःसह दुःख है। [अतः] इस बार [की जवाई मेँ यह] दुर्योधन की भाँति प्राण तजते समय की दशा मेँ देखी जाती है॥
झुलमुली—इस शब्द का अर्थ, कृष्ण कवि को छोड़ कर, सभी टीकाकारोँ ने कर्ण-भूषण विशेष, जिसको