किसी] व्याज से [वह] छबीली [मुझको अपनी] छाया क्षण मात्र छुआ कर (छुआती हुई) चली॥
'छबीली' शब्द को 'छौँह' का विशेषण भी मान सकते हैँ॥
छाया पृथ्वी पर पड़ती है। 'छुवाइ' शब्द से छाया के अंतिम भाग मात्र का स्पर्श और उससे नायिका का अपने सिर की छाया से नायक के पावोँ का स्पर्श करना, अर्थात् नायक को प्रणाम करने का भाव, व्यांजत होता है। छाया छुआने से यह भी सूचित होता है कि नायक उस को ऐसा प्रिय लगा कि यद्यपि वह उसको अपना शरीर लज्जा वश न छुआ सकी, तथापि अपनी छाया ही को उसके शरीर से छुआ कर उसने स्पर्शाभास का सुख प्राप्त किया॥
जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन।
चाहत पिय अद्वैतता काननु सेवत[१] नैन॥१३॥
जोग जुगति (योग-युक्ति)—योग शब्द यहाँ श्लिष्ट है। इसके दो अर्थ है—(१) नायक का मिलाप। (२) चित-वृत्तियोँ के निरोध द्वारा जीवात्मा का परमात्मा मेँ लीन करना। जुगति = उपाय। जोग जुगति = (१) प्रियतम-संयोग की प्राप्ति के उपाय (२) योग किया करने के विधान॥ पिय—इस शब्द के भी यहाँ दो भावार्थ हैं प्रियतम, नायक (२) परमप्रेमास्पद परमात्मा॥ अद्वैतता = अभिन्नता। नायक पक्ष मेँ इसका अर्थ अपने सामने से अलग न होने देना है, और ब्रह्म पक्ष मेँ बड़ा तथा जीव का ऐक्य-भाव॥ काननु—इस शब्द के भी यहीँ दो अर्थ हैँ (१) कानोँ को। इस अर्थ मेँ यह शब्द कान शब्द के संबंधकारक का बहुवचन रूप है, जो कि कर्मकारक व प्रयुक्त हुआ है। (२) वन। इस अर्थ मेँ यह शब्द काननु शब्द के कर्मकारक का एकवचन रूप है॥ नैन (नयन) यह शब्द भी यहाँ श्लिष्ट है। इसका पहिला अर्थ नेत्र है, और दूसरा उचित आचार तथा संयम रखने वाले अर्थात् योगी। इन दोनोँ अर्थोँ के संयोग से 'नैन' शब्द मेँ श्लिष्टपद-मूलक रूपक हुआ॥
(अवतरण)—नवयौवना मुग्धा के नेत्रोँ के सौंदर्य तथा बढ़ाव को देख कर सखियाँ, उनकी प्रशंसा करती हुई, उससे परिहासात्मक तथा उत्साह वर्द्धक वाक्य कहती हैँ—
(अर्थ)—[अब तेरे] नयन-रूपी योगी 'काननु' (श्रवण-रूपी वन) का सेवन करने लगे हैँ, मानो मदन-रूपी महा योगी के द्वारा योग (१. संयोग। २. योग क्रियाओँ) की सब युक्तियाँ सिखाए हुए [ये] प्रिय-अद्वैतता (१. प्रियतम से अलग न होना। २. परमात्मा से एकता) चाहते हैं एवँ इनकी शोभा पर रीझ कर नायक सदैव तेरे सामने उपस्थित रहेगा]॥
यहाँ सखियोँ का परिहास उसी प्रकार का है, जैसा सम-वयस्क युवतियाँ आपस मेँ किया करती हैँ कि अब तो तेरे मन मेँ और ही चाव चढ़ने लगेँ हैँ, और तेरा प्रियतम तुझ पर मोहित हो रहा है॥
खरी पातरी कान की, कौन[२] बहाऊ बानि।
'आक-कली न रली करै अली, अली, जिय जामि॥१४॥