बिहारी-रत्नाकर के छप जाने पर हमारा विचार हुआ कि उसके साथ एक यथायोग्य भूमिका भी लगा दें, और हमने उसका लिखना आरंभ भी कर दिया । यद्यपि उसका अधिकांश तो लिख गया है, पर अवकाशाभाव से उसकी समाप्ति अभी तक न हो सकी, और इस समय कई कारणों से उसे पूरा करने का अवसर प्राप्त होना भी कठिन प्रतीत होता है । इधर बिहारी-रत्नाकर को छपे प्राय: डेढ़ वर्ष हो चुके हैं, और हमारे सज्जन मित्र तथा प्रेम पाठकगण उसे देखने की उत्कंठा प्रकट कर रहे हैं । इसके अतिरिक्त भूमिका का जितना भाग लिखा जा चुका है, उससे अनुमान करने पर स्वयं भूमिका ही एक स्वतंत्र ग्रंथ होने के निमित्त अलम् जान पड़ती है। अतः इस समय क्षमा-प्रार्थना के साथ केवल एक प्राकथन लगाकर बिहारी-रत्नाकर प्रकाशित कर दिया जाता है । आशा है, उसका भूमिका-भाग स्वतंत्र रूप में शीघ्र ही पाठकों की भेंट किया जायगा । श्रीअयोध्या फाल्गुन-कृष्ण १४ ( शिवरात्रि ), सं० १९८२ वि० जगन्नाथदास ( रत्नाकर )
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