पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३८४

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अधिक दोहाँ की अकारादि सूची ६७ -- ६१ जदगि पुराने जा दिन तं । जिन सिगरी जियत न जुरत सुरति १३ कामिनि के काल्हि दसहरा कुचदाँगन कैलि करें कोटि अपरा केटि कुटिलता क्यों के । ४ | [अ] अंत मेरंगे अपने हैं। अम, इलाहल अरे देस अहो पथिक । [ अर ] ऑखिनि मैं अाएँ जेवन अानन उपटै [ए] । ११३ १६ जौ संपत [ झ ] | [ 3 ] ठाढ़ी मंदिर १११ ८६ उगें पुगे । [ 1 ] १५६ १३९ गति है। गही टेक गाई दुहावन गाइ न गुंजत गुरुजन गुहि लही ग्रीषम | [ घ] चूंघट-पट १८३ " [च ] चंदन, चंपक २६ चंपकली | ८७ चली अली, कहि । १४२ चलौ चल ही ६२ चित मैं ६६ चिनग फुयी । ताहि देखि ताही तिनु तीन बार तुम रूठीं । तेरी चलनि १८७ ऐसें अंतर [ ] : आड़े परिहैं। औगुन अगनिन । और कछु । और हँसन [क] कटि छोटी का करी । करि फुलेल करु गहि कहा अरगना कहा बवन कहा इतौ कहौ बात कयौ ने १३ दुखी सुखी देव अदेव | [ ध] धुनि सुनि I छपि छपि छरी सपल्लव १३६ नंद-नंद नख सिख जग्य न ५४ ।।