पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३६८

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सकै सताइ सकुचि सुरत सकुचि सरकि संकुचि न सकत न संपति केस संगति सुमति संगति-दोषु वैसीयै जानी वे ने इहाँ वे ठाढ़े। वैऊ चिरजीवी वेई गड़ि गाड़े वेई कर, ब्यौरनि वाही दिन ते । वाही की चित वाहि लखें वारी, बलि । | [ स ] लौने मुँह लोभ-लगे लोपे कोपे लै चुभकी लीनं हूँ साहस दोहों की अकारादि सूची JI

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  • * * * * मानसिंह की टीका * * * * * | बिहारी-रत्नाकर

५६५ | ५६५ | १३० | ४९१ | ७६५ उपस्करण-१

  • * * * * * * * ६ ६ ६ ६ ६ ॐ ॐ ० * * * * * * *
  • * * * * * * * * ॐ ॐ ॥ ६ ६ * * * * * * ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ॐ
  • * * ६ | हरिप्रकाश-टीका * * * * | लाल-चांद्रका ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ शृंगार-सप्तशती

० ० ० ० ॐ ॐ ६ ० ० * ६ ० हैं ० हैं *

  • ० ० ० ० | रस-कौमुदी