पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३६२

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. | मंगलु बिंदु सुरंग । भाहनु त्रासति भौह उँचै, आँचरु | भौ यह ऐसोई भेटत बनै न भृकुटी-मटकनि भूषन-भारु भाव उभरींह भजन की भावरि-अनभावरि-भरे भए बटाऊ भाल-लालबंदी-छए. भाल लाल बेदी, ललन भई जु छवि [ म] | ब्रजवासिनु। बैठि रही अति बेसरि-मोती, धनि बेसरि-मोती-दुति বন্ধ স্মনি बैंदी भाल, लॅबोल बुरौ बुराई न्बुधि अनुमान बिहँसि बुलाइ बिहँसति, सकुचति दोही की अकारादि सूची ४१ । ४२ । १९१

  • ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ मानसिंह की टीका * * * * * * * * * * * * * * * * ६ ६ ६ ६ ६ ६ | बिहारी-रत्नाकर

१६ ।। उपस्करण-१ कृष्ण कवि क टीका

  • * ॐ
  • * * * * * * * * * * * * * * ॥ ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | हरिप्रकाश-टीका * * * * * * * * * * * * * ६ ६ ६ ६ ६ ६ * * * * | लाल-चंद्रिका ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ शृंगार-सप्तशती

३ [ ० ८ ० * ० * ० ० * * * ० ० ० * * * * * * ० ० * | रस-कौमुदी