पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३६१

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बिलखी सवै बिलखी उनको बिरह सुकाई बिरह-बिपात-दिनु बिरह-बिथा-जल बिरह-विकल विरह-जरी बिय सौतिनु विनती रति विधि, विधि कोन विथुल्यौ जावकु बिछुरै जिए विषम पृषादित विकसित-नवमल्ली बालमु बारें बाल-बेलि बाल छबीली बाल, कहा बामा, भामा बाम वाँह यादृतु नो उर बहु धन ले बहके, सब जिय बहकि बड़ाई वहकि न हैं। दोहों की अकारादि मुनी मानसिंह की टीका २ ३२६ ! ३२९ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ६ ६ ६ ६ ६ ६ | बिहारी-रत्नाकर | कृष्णकवि की विहारी-रत्नाकर | ५८७ ५८७ ३७६ | ४२४ | ११७ | ११६ |

  • * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * ६ | हरिप्रकाश-टीका ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | लाल-चंद्रिका * * * * * * * * * ६ ६ ६ ० १ * * * * * * * * * * • | टंगार-सप्तशती |

० ० ० ० ० हैं ० * ० ० * ० * * ० *

  • * • • • • | रस-कौमुदी