पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३५८

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पहिरि न भूषन पहिरत ह पल सोहैं पलनु पीक पलनु प्रगटि पल न चलें पथौ जोरु परसत पोंछत परतिय-दोषु पत्रा ही तिथि पति-रितु-औगुन पति रति की पतवारी माला पटु पाँखे । पट्ट सो पछि पट की हिंग पग पग मग पंचरंग-रंग-बंदी न्हाइ पहिरि नैना नेऊ न नैन लगे । नैको उहिँ न नैकु हँसीह नंकु न झुरसी [१] दोहों की अकारादि सूची ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ६ * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *

  • * * * * e मानसिंह की टीका * * * * * ? बिहारी-रत्नाकर

३३५ | ३३५ ] ७५ | ११६ | ५२६ | ५१३ । ५१३ | २७२ उपस्करण-१ कृष्ण कवि की |

  • * * ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ६ * * ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | हरिप्रकाश-टीका * * * * * | लाल-चंद्रिका # * * * * * | श्रृंगार-सप्तशती ३ ० ० * * * * * * * * * * * * * * ० ० ० * * ० ० ० | रस-कौमुदी