पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३४५

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विहारी रत्नाकर दोह की अकारादि सूची टीका • 3 | रस-कौमुदी | ४१२ ३९४ ४२६ | १६ | ५८६ १५८ ६६६ ५१६ ! ५१६ ४६३ कनकु कनक हैं कन देब। सान्यो कपट सतर भा ह कब की शान कब को रतु कर के मोड़ करतु जातु जेती करतु मलिन कर-मुंदरी की कर ले, चूमि कर ले, सँग्नि कर समेटि करी बिरह ऐसी करु उठाई। कर चार सी करी कुवत जगु कहत, नटत कहत सबै कवि कहत सबै, बेदी कहति ने देवर की कलाने एकत कहा कहा बाकी कहा कुसुम कहा भयौ जी का लड़ते दृग ६ ६ ६ ॐ ! ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ है । * * * * * * * *: * मानसिंह की टीका

  • * * | लाल-चंद्रिका * * * * * * * * * * * * * ४ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | हरिप्रकाश-टीका * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ | शृंगार-सप्तशती ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ • • • • * * ० * ० ० ० ॐ ११६ ११८ १११ १६ ८५ | ८५ ६२९ ५६५ ५२६ । २५४ १११ ११० | ४७१ २७७ | २९ ५१२ | ५१२ ८१ । १४५ ५१६ | ४३२ | ७= ८० ५७ ! ५७ ४७८ ५०६ । ३६७ ३८७ | ४७१ | १५० । १५४ १५४ ! २५१ | २८० २२७ २५२ | २४७ | ०