पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३३

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बिहारी-रत्नाकर होता है।२ अंक की पुस्तक में जा ७३ दोहे अधिक हैं, वे इनमें से अन्य किसी प्राचीन प्रति में नहीं मिलते, और न वे अपनी रचना प्रणाली ही से विहारीकृत प्रतीत होते हैं। चौथे अंक की प्रति में ४६४, ४६८ और ५६३ से ले कर ५६६ तक एवं ७१३ अंक के दोहे नहीं हैं। इनमें से ५६३ से लेकर ५६६ अंकों तक के दोहों के न होने के विषय में तो यह प्रतीत होता है। कि लेखक ने जिस प्रति से लिखा, उसका एक पृष्ठ का पृष्ठ भूल से छोड़ दिया; क्योकि ये दोहे अन्य सब प्राचीन प्रतियों में मिलते हैं । ४६४ तथा ४९८ अंकों के दोहे बिहारी के प्रसिद्ध दोहे हैं, और प्रायः सतसई की सभी प्रतियों में प्राप्त होते हैं । अतः इनके इस प्रति में छुट जाने का कारण लेखक का प्रमोद मात्र मानना संगत है ; और, ७१३ अंक के दोहे के विषय में ऊपर लिखा जा चुका है। इस प्रति में ये दो दोहे विहारी-रत्नाकर से अधिक हैं मान बुटैगौ मानिनी, पिय-मुख देखि उदोतु । जैसै लागै घाम के पाला पानी होतु ॥ ७ ॥ प्यौ थिचुरत तन थकि रह्यो, लागि चल्यो चितु गेल । जैसे चीर चुराइ लै, चलि नहिँ सकै चुरेल ।। ४६ ॥ पर ये दोनों दोई न तो हमारी किसी अन्य प्राचीन प्रति ही में मिलते हैं, और न बिहारी की रचना ही से टक्कर खाते हैं, अतः इनको विहारीकृत मानना समीचीन नहीं भात होता । ऊपर लिखे हुए कारणों से विहारी-रत्नाकर में वे ही ७१३ दोहे स्वीकृत किए गए हैं, जो मानसिंह वाली टीका तथा रत्नकुँवर जी वाली प्रति अर्थात् हमारी तीसरी तथा पाँचवी पुस्तकों में हैं ॥ बिहार-रत्नाकर का पाठ-संशोधन दोहों के पाठ शुद्ध करने में हमको बड़ा श्रम उठाना पड़ा । प्रत्येक दोहे के पाठ का मिलान पाँच प्राचीन प्रतियों से करने के अतिरिक़ जो शब्द सतसई में अथवा अन्यान्य प्रजभाषा-ग्रंथों में कई कई रूपों में लिखे मिलते हैं, उनके विहारी-स्वीकृत रूप । निर्धारित करने में बहुत समय व्यय हुआ, और बड़ी कठिनाई उठानी पड़ी । जैसे 'नॅक' शब्द प्रजभाषा की अन्यान्य पुस्तकों तथा सतसई की अनेक प्रतियों में ‘नेक', 'नैक', 'नॅक' तथा 'नेकु' रूपों में लिखा मिलता है । इसका विहारी-स्वीकृत रूप स्थिर करने के लिये पहले तो यह निर्धारित किया गया कि सतसई भर में यह १५ दोहों में आया है, और उनके अतिरिक्त ४ दोदों में यह 'नॅक' के रूप में मिलता है । पहली पुस्तक में केवल ४९३ दोहे हैं, अतः उसमें यह शब्द बारह दोहों में आया है। इनमें से आठ दोहों में तो यह ‘नैक' रूप में लिखा है, और चार दोहों में 'नैक' रूप में। दूसरी पुस्तक में यह एक स्थान पर 'नैक', दस स्थानों पर 'नैंक', दो स्थानों पर 'कु' तथा दो स्थानों पर 'नैन' के रूप में मिलता है। तीसरी पुस्तक में आदि के २५० दोहे खंडित है, अतः उसमें यह शब्द केवल छ दोहा में आया है। उनमें से एक दोहे में 'नेक',एक में नैक तथा चार में 'नॅक' रूप में हैं। चौथी पुस्तक में यह एक स्थान पर 'नेकु' तथा चौदह स्थानों पर 'नेक'लिंखा मिलता है। पाँचवाँ : पुस्तक में इसका रूप छ स्थानों पर 'नॅक' और नव स्थान पर 'नेक पाया जाता हैं ॥: .