पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२७९

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बिहारी-रत्नाकर


२३६ विहारी-रत्नाकर करते ) । मैं [ तो तेरे शिक्षानुसार ] 'कसु' ( बल, क़ाबू ) कर के ( बड़ी कठिनता से, अर्थात् यद्यपि ऐसा करने में मुझे कष्ट होता है, तथापि तेरे अनुरोध से ) [ इनको ] रिस के ( क्रोध के अर्थात् क्रोध भरे हुए से) करती हूँ ( बनाती हैं), [पर ]ये ‘निसुके' (प्रिय तम के दर्शन के निमित्त ललाए हुए ) हँस देते हैं । इस दोहे में अनेक पाठांतर हैं। हमारी पहिली तथा चौथी पुस्तक में यह दोहा नहीं है। जिन तीन पुस्तकों में यह है, उनमें भी इसके पाठ में अंतर हैं; जो कि पादटिप्पणी मैं दिखाए गए हैं। बहुधा टीकाकः ने 'र' के स्थान पर 'द', 'डिगि' के स्थान पर 'ये' एवं 'निसुके' के स्थान पर 'निसिखे' पाठ रक्खा है। इन पाठांतर से अर्ध निःसंदेह सरद्ध हो जाता है, पर हमारी तीन प्राचीन पुस्तकों में से किसी में यह पाठ नहीं है, अतः उन तीन पुस्तक के मिलाने से जो पाठ उचित प्रतीत हुअा, वह इस संस्करण में रखा गया है । कृष्ण कवि की टीका के पाठ से इस पाठ मैं केवल 'निसके' शब्द में अंतर पड़ता है । कृष्ण कवि की टीका मैं 'निसुके' के स्थान पर 'निसस पाठ है, और 'क' तथा 'के' के स्थान पर ‘करि' तथा 'क' ॥ मोहूँ स बातनु लगें लगी जीभ जिहिँ नाङ । सोई लै उर लाइये, लाल, लागियतु पाइ ।। ५३९ ।। नार= नाम ।। ( अवतरण )- नाथिका से बातें करते करते कहीं नायक के मुहँ से किसी सपत्नी अथवा अन्य स्त्री का नाम निकल पड़ा है, जिससे नायिका, उसके प्रति नायक का प्रेम अनुमानित कर के, कुछ रुष्ट सी हो गई है । नायक, उसको प्यार से अंक में भर कर, उस का रोष निवारण करना चाहता है । इस पर नायिका उससे कहती है | ( अर्थ )---हे लाल, [ मुझसे आपके ! पांव लगा जाता है ( पाँव लग कर विनती की जाती है ) [ कि ] मुझसे भी बातों में लगने पर ( बातें करते समय ) ( अापकी ] जीभ जिसके नाम से लगी हुई है, उसी के ले कर छाती से लगाइए [ मुझे छोड़ दीजिए ] ॥ नावक-सर से लाइ कै; तिलकु तरुनि इर्ते तक। पावक-झर सी झर्म कि कै, गई झरोखा झाँकि ॥ ५७० ॥ नावक-सर- फारसी भाषा मैं 'नाव' अथवा 'नाय' नल को कहते हैं। उसमें” छुद्रवाचक 'क' लगा कर 'नायक' शब्द बना है, जिसका अर्थ नलिका अर्थात् छोटा नल हुआ । इस शब्द का प्रयोग फ़ारसी में एक ऐसे बाण के अर्थ में किया जाता है, ओ नालिका के द्वारा चलाया जाता है । यह नलिका लोहे की होती हैं । इतमें बारूद तथा छोटे मोटे बाण भर दिए जाते हैं । इस नलिका में एक स्थान पर छिद्र होता है। उसमें अग्नि का संचार करने पर, बारूद के प्रभाव से, उसमें के बाण निकल कर, बंदूक की गोली की भाँति, बड़ी दूर १. जीधि ( ५ ) । २. सो ( ३ ) । ३. नैंक ( २ ) । ४. इति ( ३, ५) । ५. ताकि ( ३, ४, ५ ) । ६. भूम ( २ )।