बिहारी-रत्नाकर बहाने से ( वृथा वहाने से ) और [ सब नायिकाएँ तो नायक ने ] बहरा दाँ ( टाल दीं, वहाँ से हटा दी ), [ अर्थात् इस समय बड़ी धूप है, अतः कुंजभवन में चलने का अवसर नहीं है, यह कह कर अपने अपने महलों को भेज दीं, और अपनी ] मनभावती | "यिका ] को [ अपने ] तन की छाया में छिपा कर ललन [ कुंजभवन को ] चले ॥ लहलहाति तने तरु नई लचि लग लौं लफि जाई ।। ल लॉक लोइन-भरी लोइनु लेति लगाँइ ॥ ५३२ ॥ लग-हमारी चार पुरतकों में यही पाठ है । पर कई टीकाकारों ने ‘लग के स्थान पर लगि' पाठ रक्खा है। दोनों पाठों का अर्थ एक ही, अर्थात् कंपा, हे ॥ लोइन-भरी= (१) लावण्य-भरी । (२) लासा:भरी । चिडिया साने के लासे को भी लोयन कहते हैं। किसी किसी ने ‘लोइन' शब्द का एक ही अर्थ, अर्थात् लुनाई, मान कर इसे बिहारी के बिगाड़े हुए शब्दों में परिगणित किया है । पर विहारी ने सततैया के तीन आर दोहाँ में भी ‘लाइन' शब्द ‘लुनाई' के अर्थ में रक्खा है, जिससे प्रमाणित होता है कि किसी अावश्यकता के कारण बिहारी ने 'लुनाई' को बिगाड़ कर ‘लोइन' नहीं कर डाला था, प्रत्युत उस समय लोइन' शब्द 'लावण्य' के अर्थ मैं प्रचलित था । 'लोइन' शब्द लावण्य शब्द का अपभ्रंश इस क्रम से हो गया है-लावण्य, लोअन, लायन, लोइन । लोइनु= ( १ ) नेत्र । ( २ ) लवा पक्षी ॥ | ( अवतरण )-नायक के नेत्र नायिका की लंक पर मोहित हुए हैं, सो नायक अपने नेत्र की उपमा लवा पक्षिय से एवं नायिका की कटि की उपमा बहेलिए की लग्गी से दे कर कहता है| ( अर्थ १ )-‘लाइन'(१.लावण्य । २. लासा )-भरी लाँक (कटि) तन-रूपी तरु(वृक्ष) में नई ( झुकी )[ और ] लहलहाती ( लपलपाती ) हुई लचक कर ‘लग' ( क ) की भाँति ‘लाफ' ( झुक ) जाती है, [ और ] ‘लोइन' (१. लोचन । २. लवा पक्षियों ) का लगने पर ( १. अपने पर पड़ने पर। २. अपने से छू जाने पर ) लगा लेती है ( १. सक़ कर लेती है। २. फंसा लेती है ) ॥ | इस दोहे का दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है ( अर्थ २ )-[ उसके ] शरीर में तरुनई (जवानी ) लहलहा रही है, [ तथा उसकी ] लावण्य-भरी कटि लोचन के लगने से ( उस पर पड़ने से ) लचक कर 'लग' ( बाँस की पतली छडी ) की भॉति ‘लफि' ( झुक ) जाती है, [ और देखने वालों की ] आँखों को [ अपने में ] लगा लेती है ( आसफ़ कर लेती है ) ॥ । रही अचल सी है, मनौ लिखी चित्र की आहि । तनैं लाज, उरु लोक कौ, कहौषिलोकति काहि ।। ५३३ ॥ ( अवतरण )-उपपति नायक ने परकीया का अपने ऊपर अनुराग होना छिपा रखा था। इस नमय नायिका को उसकी ओर जड़वत् टकटकी बाँध कर देखते देख कर, और उसका प्रेम लक्षित कर के, १. तनु (३, ५ )। २. जाय ( ३ )। ३. लगाय ( ३ ) । ४. की ( २, ४) ।