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विहारी-कर | मष= मधु, शहद ।। पियूष ( पीयूष )=अमृत ॥
(अवतरण)-तमधिराजवती मुग्धा नायिका की सली, मात्र से नायिका की वचनमाधुरी की प्रशंसा कर के, उसके हृदय में प्रीति उपजाती है। कहती है कि अभी खजा-वश वह तुमसे बोलती नीं, अतः तुमको उसकी वचन-माधुरी श अनुभव नहीं है, और इसी से तुम्हें ऊस, मधु एवं अमृत में माधुरी जान पड़ती है। पर जब वह क्षण भर भी तुमसे बातें करेगी, तो उसकी वचनमाधुरी के आगे ये सब पदार्थ तुमको फीके लगने लगेंगे
| ( अर्थ ) है छबीले लाल, वह जब तक [ तुमसे ] क्षण मात्र बातें नहीं करती, तब तक [ तुम्हारी ] ऊख, शहद [ तथा ] अमृत की भूख (चाह ) नहीं जाती [ जहाँ उसने तुमसे दो दो बातें कीं, वहाँ तुम इन सबकी माधुरी भूल कर उसकी बातों ही की माधुरी के पान करने की लालसा में लीन रहने लगोगे
अँगुरिनु उचि, भरु भीति है, उलंमि चितै चख लोल ।
रुचि सौं दुहुँ दुहुँनु के चुमे चारु कपोल ॥ ५०५ ॥ उलमि = झुक कर । लोल = चंचल ।।
( अवतरण )-उपपति नायक तथा परकीया नायिका के घरों के बीच में केवल एक भित्ति मात्र का अंतर है। किसी दिन अवसर पा कर दोनों ने अपनी अनी छत पर से उचक कर परस्पर कपोत्न का चुंबन किया । वही वृत्तांत कोई अंतरंगिनी सखी किसी अन्य अंतरागनी सखी से कहती है
| ( अर्थ )-[ पांवों की ] उँगलियों पर उचक कर, भीति ( मुंडेर ) पर [ अपना अपना ] भार दे कर, [ आगे की ओर ] झुक कर [ तथा ] चंचल दृगों से [ चारों ओर ] देख कर [ कि कोई देखता तो नहीं है ] दोनों ने दोनों के सुंदर कपाल [ बड़ी ] चाह से चूमे ।।
नागरि, बिबिध विलास तजि, घसी गवैलिनु हँहि ।
मूढे नि मैं गनी कि तूं हूट्यौ है इठेलाँहि ॥ ५०६॥ बिलास= नागरियाँ क से सुख चैन, रहन सहन, चेष्टा इत्यादि । गर्वोलिनु = गवारियाँ ॥ मूढ़नि= ज्ञान-शून्य, निर्बुद्धियों॥ गनिवी=गिनी जायगी, गिनने के योग्य होगी । किनँ =या तो तू, नहीं तो तू ॥ हुव्य है-इठा देने का अर्थ १३-संख्यक दोहे में द्रष्टव्य है ।।
( अवतरण )-गवॉरिय मैं बसी हुई किसी नागरी पर अन्योकि कर के कवि कहता है कि गवां मैं बस कर गुणी को, उन्हीं का सा गवाँरपन न करने पर, हास्यास्पद हो होना पड़ता है
| (अर्थ)-हे नागरी ! [ अब तू नागरियों के से] विविध चाल व्यवहार, रहन सहन छोड़ दे।[क्योंकि तु] गवॉरिया में बसी है, या ते [अर्थात् नहीं तो ] तु मूढ़
१. उलट ( ३, ५ ) । २. चूने (४) । ३. मोह ( २, ३ ), माह (४) । ४. मूवी ( ३, ४, ५ ) । ५. इठलाह ( २ ), इठलाई (४) ।
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बिहारी-रत्नाकर