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बिहारी-रत्नाकर १६७ प्राचीन काल में शर-पंजर बनाया जाता था। इसके भीतर चारों ग्रोर बाणों के फलों की प्रकृति के शूल लगे रहते थे । अपराधी जब इसमें बंद कर दिया जाता था, तो किसी ओर हिलडुल नहीं सकता था, क्योंकि जिस ओर वह किंचिन्मात्र भी झुकता था, उस ग्रोर के भल्ल उसको चुभते थे । रितुराज ( ऋतुराज ) = ऋतुओं का राजा अर्थात् वसंत । ऋतुराज का प्रयोग कवि ने इस निमित्त किया है कि दंड देने का काम तथा अधिकार राजाँ ही का होता है । | ( अवतरण )-नायिका मान किया चाहती है। सखी उसको यह कह कर मान करने से रोकती है कि इस ऋतुराज के शासनकाल मैं मान कर के वियोगिनी बनना बड़ा अपराध है। देख, वियोगियाँ को दंड देने के निमित्त ऋतुराज महाराज ने वन-उपवन को काम के श द पिँजदा बना रखा है। यदि तु इस समय मान करेगी, तो महान् कष्ट नैं पड़ेगी । | ( अ )-[ हे सखी! देख, ] उपवन [ तथा ] विपिन के समाज प्रत्येक दिशा में कुसुभित ( फूल हुए ) दिखाई देते हैं । माने ( से तू यह समझ कि ) ऋतुराज ने वियोगियों [ को दंड देने ] के निमित्त । इन उपवन तथा वनों के समाज को काम के बाणे का ] शर-पंजर बनाया है ॥ - 'X ' - टटकी धोई धोती, चटकीली मुख-जोति' । लसति रसोई के बगर, जगरमगर दुति होति ॥ ४७७ ।। धोवती = धोती ।। बगर = कोठा, घर ॥ ( अवतरण )--आर्य-जाति के अच्छे घरौं मैं यह परिपाठी है कि जब नई पतोहू आती है, तो उससे रसोई बनवाने के निमित्त कोई शुभ दिन नियत किया जाता है। उस दिन वह नव-वधू धोई हुई, स्वच्छ तथा अपरस, धोती पहन कर रसोई बनाती है, और परिवार के लोग उसी दिन से उसके हाथ का बनाया हुआ भोजन करना प्रारंभ करते हैं। उसी अवसर की नायिका की शोभा सखी नायक को सुना कर उसे, उसको देखने के निमित्त, आवाहित करती है, क्योंकि उस समय, रसोई के कार्य में हार्थों के फैंसे रहने के कारण, वह शीघ्र धृवट भी नहीं कर सकती ( अर्थ )-[ इस समय उस नायिका की शोभा देखने ही योग्य हैं। उसके शरीर पर ] टटकी ( तुर की ) 9ोई धोनी [ शोभित है, और उसके ] मुख की ज्योति [ अग्नि की चरक से और भी ] चटकीली [ हो रही ] है। [ इस रूप से वह ] रसोई के बगर ( घर ) में लस रही है ( विराज रही है ) , [ और उसकी ] द्युति जगमगा रही है ॥ सोहति धोती सेत मैं कनक-बरन-तन बाल ।। सारद-रद-बीजुरी-भा रद कीजैति, लाल ॥ ४७८ ॥ बारद ( वार्द )= बादल ॥ भा= प्रभा, शोभा ।। ( अवतरण )—सखी अथवा पूर्ती नायक से नायिका के शरीर की युति की प्रशंसा कर के उसकी रुचि बढ़ाती है १. ज्योति ( ३, ५ ) | २. बारिद ( १, ३, ४) । ३. कीजतु ( २, ३ ), कोजत ( ५ ) ।