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बिहारी-रत्नाकर



बिहारी-रत्नाकर नयँ बिरह बढ़ती बिथा खरी विकल जिय बाल । बिलखी देखि परोसिन्यौ हरखि हँसी तिहिँ काल ।। ४५६ ॥ ( अवतरण )-नायिका को नया नया विरह हुआ है, जिसके कारण वह अत्यंत विकल हो रही है। पर अपनी बोलावस्था तथा पूर्वानुभव:शुन्यता के वश एवं लजा तथा अज्ञानता के कारण वह, संदेश भेज कर अथवा पत्र-द्वारा अपना विरह निवेदित कर के, नायक को बुलाने का उपाय करने में हिचकती है, और सोच रही हैं कि किस प्रकार विरह-दुःख दूर हो । इतने ही मैं वह, अपनी प्रवीण पड़ोसिन को भी दुखी देख कर, अनुमान करती है कि इसे भी मेरे ही पति का वियोग व्यथित कर रहा है, और यह चतुर होने के कारण अवश्य ही नायक को, पत्रादि-द्वारा अपना विरह निवेदन कर के, बुला लेगी । इस विचार से, विरह-व्यथा मिटने की संभावना मान कर, उसको हर्ष होता है, और वह अपना दुःख भूल कर, पड़ोसिन की चोरी खुल जाने पर तथा संयंग-भावना पर प्रसन्न हो कर, हँस देती है। सखी-वचन सखी से ( अर्थ )-नए विरह में बढ़ती हुई व्यथा से [ वह ] जी में अत्यंत विकल बाला ( नई अवस्था वाली स्त्री ) पड़ोसिन को भी बिल्खी ( दुखी ) देख कर उसी समय हर्षित हो कर हँस पड़ी ॥ छत नेहु कागेर हियँ, भई लखाई न टाँके । बिरह-तनैं उघखौ खै अब सँहुड़ कैसो आँकु ॥ ४५७ ॥ छतौ = क्षत हो गया, अलक्षित हुया, समा गया ॥ कागर= कागज ॥ लखाइ=लक्षित होने की क्रिया, पहिचान ।। टाँकु-एक बहुत छोटे तोल के परिमाण को कहते हैं । बोलचाल में टाँक का अर्थ बहुत थोड़ा लिया जाता है । आँकु= चिह्न । यहाँ इसका अर्थ अक्षर अथवा लेख समझना चाहिए ।। सेर कैसो आँकु= सँहुड़ के दूध से लिखे हुए शॉक के ऐसा आँक । श्वेत कागज पर सँहुड़ के दूध से लिख देने से लेख, सुख जाने पर, अलक्षित हो जाता है। पर जब वह कागज़ अग्नि पर सेंका जाता है, तो वह लेख काला हो कर दिखाई देने लगता है ।। | ( अवतरण )-इस दोहे की नायिका परकीया प्रोषितपतिका है । पर विलक्षणता यह है कि वह पूर्वानुरागिनी होने की अवस्था ही में प्रोषितपतिको भी हो गई है । पूर्वानुराग मैं उसने, कुखकानि के कारण, अपना अनुराग किसी पर प्रकट नहीं किया था, यहाँ तक कि नायक को भी यह नहीं प्रकट होने पाया था कि यह मुझ पर अनुरक है । यद्यपि नायक ने उससे मिलने का उद्योग भी किया था, तथापि वह टाल गई थी, और दूर ही दूर से उसके दर्शन मात्र से संतोष कर लेती और मिलने के निमित्त किसी परम सुअवसर की प्रतीक्षा करती थी । अब जब नायक पर देश चला गया, तो असे. देखे विना विकल हो कर उसने अपने अनुराग का वृत्तांत सखी से कहा, और उसको नायक के पास भेजा । सस्त्री ने जब नायक से उसका विरह-वृत्तांत कहा, तो नायक ने आश्चर्य से पूछा कि अब यह प्रेम कैसे उत्पन्न हो गया, मेरे वहाँ रहने पर तो वह मेरी ओर कुछ रुझान ही नहीं करती थी । इसके उत्तर में सखी कहती है कि उसके हृदय में आपका प्रेम कुछ नए सिरे से नहीं उत्पन्न हुआ है, प्रत्युत १. अयौ (४) । २. कागद (४) । ३. हियँ ( २ )।