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बिहारी-रत्नाकर

करे। [क्या तू यह बात] नहीँ जानता कि इस पुर में (अर्थात् इस मंडली मेँ) [सब] धोबी, ओड़ [तथा] कुँभार (अर्थात् निकृष्ट जन) [ही] बसते हैँ [जिनको नित्य गदहोँ से काम पड़ता है। फिर भला वे तेरे हाथियोँ अर्थात् महान् गुणोँ को क्योँ पूछने लगे]॥

खरी लसति गोर गरें फंसति पान की पीक । मनौ गुलीबद-लाल की, लाल, लाल दुति-लीक ॥ ४४०॥ ( अवतरण )-सखी नायिका की गुराई तथा श्रमलता की प्रशंसा कर के नायक की रुचि बढ़ाती है (अर्थ) हे लाल, [ उसके ] गोरे गले में धसती हुई (पान खाने के समय नीचे उतरती हुई ) पान की पीक [ उसकी विमल तथा पतली त्वचा में से झलक कर] खरी लसती (अति शोभा देती) है। मानो गुलूबंद (गले में पहनने के भूषण विशेष ) के खाल ( माणिक्य ) की झलक की लाल रेखा है॥ - - - - पाइल पाइ लगी रहै, लगौ अमोलिक लाल । भोडर हूँ की भासिहै बँदी भामिनि-भाल ॥ ४४१ ॥ भोडर = अभ्रक ॥ (अवतरण )-पायल तथा बंदी पर अन्योकि के रूप में कवि की उक्ति है कि जिस व्यकि मैं स्वयं योग्यता नहीं है, वह दूसरों की सहायता तथा भूषणादि से श्रेष्ठ पद नहीं पा सकता, पर जिसमें स्वयं योग्यता होती है, वह यद्यपि सामान्य भी हो, तथापि उच्च पद प्राप्त करता है (अर्थ)-पायल (पायजेब) पाँव [ ही ] में लगी रहती है (नीचे ही पद पर रहती है), [उसमें ] अमोलिक लाल (माणिक्य ) [ लगे हैं, तो] लगे रहो; [ पर सामान्य ] भोडर की भी बेंदी (टिकुली ) भामिनी ( सुंदर स्त्री) के भाल पर शोभा देगी (उच पद प्राप्त करेगी)॥ कुटिल अलक छुटि परत मुख बढ़िगी इतो उदोतु । बंक बकारी देत ज्याँ दामु रुपैयाँ होतु ॥ ४४२ ॥ बकारी टेढ़ी लकीर, जो किसी अंक को रुपया सूचित करने के निमित्त उसकी दाहिनी ओर खींच दी जाती है । जैसे यदि पाँच के अंक के विषय में यह सूचित करना हो कि इसका अर्थ पाँच रुपया है, तो इस रीति से-५)-लिखा जाता है ॥ दामु-एक पैसे के पच्चीसवें भाग को दाम कहते हैं। बिहारी के समय में कोई अंक विना नकारी लिखे जाने पर उतने दामाँ का बोधक माना जाता था ; जैसे, 'अमुक वस्तु ८ की है' लिखने से यह समझा जाता था कि वह वस्तु आठ दाम की है । पर जब किसी अंक की १. मानो ( ३, ५) २. गुलूबंध ( २ ), गुलबँद ( ३, ५ ) । ३. लगे ( ४ ) । ४. बढ़िगै (१)। ५. इतै (१)। ६. बकाई (५) । ७. रुपए ( ३, ५)।