पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२०९

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बिहारी-रत्नाकर


१६६ बिहारी-रत्नाकर न जक धरंत हरि हिय धेरै, नाजुक कमला बाल ।। भजत, भार:भर्यं-भीत है, घनु, चंदनु, बनमाल ॥ ४०५॥ भजत भोगते हुए, सेवन करते हुए ॥ धनु = घनसार, कपूर ॥ ( अवतरण )--सखी नायिका से नायक का विरह-निवेदन बड़ी चातुरी से करती है । कहा तो वह यह चाहती है कि उनको तेरे विरह मैं घन, चंदन, वनमाल इत्यादि सुखद नहीं हैं, पर उसी बात को वह यह कहकर व्यंजित करता है कि वह घन, चंदन, वनमाल को धारण कर के कल नहीं पासे, झ्याँकि उनको यह अ शंका होती है कि उनका भार उनके हृदय मैं बसी हुई तुझ कमला सी सुकुमारी बाला पर पड़ेगा । | ( अर्थ ) -हे कमला सी नाजुक ( सुकुमारी ) चाला ! हरि [ तुझको ] हृदय में धरने के कारण भार-भय-भीत ( तुझ पर भार पड़ने के भय से शंकित ) हो कर घन, चंदन तथा ] वनमाल धारण करते हुए (अर्थात् धारण कर के) जक ( कल, चैन ) न धरते ( नहीं पाते ) ॥ नासा मोरि, नचाइ जे करी कका की साहै ।। काँटे सी कसँकै ति हियँ गड़ी कँटीली भौंह ॥ ४०६ ।। कका-काका अथवा कका पितृव्य को कहते हैं । कका काका का लघु रूप है । स्त्रियों का स्वभाव है कि वे अपनी बात को सच्ची प्रत कराने के निमित्त 'काका की सह', 'बाबा की सौंह' इत्यादि वाक्याँ का प्रयोग करती हैं । ति ( ते )= वे ॥ कॅटली= कंटकित अर्थात् सात्विक के कारण खड़े हो गए बालों वाली ॥ | (अवतरण )-नायक ने नायिका को कहीं शून्य स्थान में पा कर उससे कुछ छेड़-छाड़ की थी, जिस पर नायिका ने नाक चढ़ा कर और भौहों को नचा कर कहा था कि काका की सह, मुझको यह छेड़-छाड़ अच्छी नहीं लगती' इत्यादि । ऊपर से तो उसने यह कहा, पर वास्तव में उसका हृदय भी नायक पर अनुरङ्ग हो गया था, जिससे सात्त्विक के कारण उसकी भई कंटकित हो गई थीं। इस बात नायक ने आँप लिया । एक तो वह नायिका उसके हृदय को भा ही गई थी, दूसरे उसका अनुराग विनित होने से नायक उस पर और भी लुभा गया, और अब उसका वियोग उसको साल रहा है। यह वृत्तांत वह उसकी सखी अथवा किस तूती से कह कर नायिका को अपने से मिलाने की प्रार्थना करता है ( अर्थ )-[ उसने मेरे छेड़ने पर ] नाक को मेड़ ( चढ़ा) कर, [ और ] जिम [ भौंह] को नवा कर काका की सौंई (शपथ) की [ कि तुम्हारी यह ढिठाई मुझे अच्छी नहीं लगती, इत्यादि ], वे कैंटीली ( कंटकित ) भाहे मेरे हृदय में गड़ी [ हुई ] काँटे सी कसकती ( खटकती, पीड़ा देती ) हैं। इस दोहे के पाठ में हमारी पाँचौं प्राचीन पुस्तक मैं ऐसा अंतर है कि अर्थ मैं बहुत अंतर १. धरति ( ३, ५ ) । २. धरत ( २ ) । ३. भै ( १ ) । ४. कै ( २, ३, ५), दृग ( ४ ) । ५. करति ( २ )। ६. कसकति ( २, ३, ४, ५) । ७. हियँ ( २, ३, ४, ५) । ८. ग. (२ )।