बिहारी-रत्नाकर रहा हुआ अर्थात् पहिले से भीगा हुआ । यह वाक्यांश ‘हियो' शब्द का विशेषण है ॥ पसीज पसीजि = उष्णता के कारण प्रस्वदित हो हो कर ।। ( अवतरण )--सखी अथवा दूती नायक से नायिका के अश्रु-पात की व्यवस्था निवेदित करती है ( अर्थ )-प्रेम-रूपी रस में भीग रहा हुआ, [ और ] अव विरहाग्नि से संतप्त हुआ हुआ [ उसका ] हृदय पसीज पसीज कर आँखों के मार्ग से पानी ( अर्क ) बहता है ॥ जब किसी पदार्थ का अक़ खींचना होता है, तो पहले उसे जल मैं भली भाँति भिगा देते हैं, और फिर नलिकायंत्र में भर कर अग्नि पर चढ़ा देते हैं। तब उस पदार्थ का पसेत, पानी के रूप मैं, नलिका के मार्ग से टपकने लगता है। यही व्यापार इस दोहे मैं स्फुरित है ।। छला परोसिनि हाथ हैं, छलु करि, लियौ, पिछानि ।। पियहिँ दिखायौ लखि बिलरिख, रिस-सूचक मुसकानि ॥ ३७९ ॥ ( अवतरण )-नायिका ने अपने पति का छल्ला, पड़ोसिन को पहिने देख कर, किसी छत्व से उससे ले लिया, और पति को रिसं-सूचक मुसकिराहट के साथ दिखलाया । यही वृत्तांत सखी सी से कहती है | ( अर्थ )-[ अपने प्रियतम का ] छल्ला पहचान कर [ नायिका ने उसे कोई ] छल कर के पड़ोसिन के हाथ से ले लिया, [ और ] बिलख ( दुखी हो ) कर रोष प्रकट करने वाली मुसकिराहट से ( के साथ ) [ उसे ] देख कर प्रियतम को दिखाया ( प्रियतम का ध्यान उस ओर आकर्षित किया ) ॥ इस दोहे मैं बड़ी अच्छी स्वभावाक़ि है। मनुष्य की यह प्रकृति है कि जब वह किसी को कोई वस्तु देखते देखता है, तो स्वयं भी उसको देखने लगता है। अतः नायिका ने, विना कुछ कहे सने, यस छल्ले को 'रिस-सूचक मुसकानि' के साथ देख कर, घड़ी चातुरी से, नायक का ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया। हठि, हितुकरि प्रीतम-लियौ, कियौ जु सौति सिँगारु। अपनँ कर मोतिनु गुयौ, भयौ हरा हर-हारु ।। ३८० ॥ प्रीतम लियौ = प्रियतम से लिया हुआ । इस पद में पंचमी तत्पुरुष समास है, और यह 'हार' शब्द का विशेषण है ।। हर-हरु= महादेवजी का हार अर्थात् सर्प ।। ( अवतरण )-नायिका ने अपने हाथ से गुथ कर मोतिय का एक बड़ा सुंदर हार नायक को पहनाया था । नायक उसे पहने हुए अन्य स्त्री के यहाँ गया । उसने उसे अति मनोहर देख कर नायक से माँगा । पहिले तो नायक, यह विचार कर कि इस हार को कहीं वह मायिका इसके गले में देख लेगी तो कलह होगा, देने में हिचकिचाया । पर फिर उसके हठ करने पर उसने उसे दे दिया । उस जी ने जब उससे अपना श्रृंगार किया, तो नायिका की दृष्टि हीं उस पर पर ही तो