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बिहारी-रत्नाकर १४३ (अग्नि ) के ताप से तप कर, [ अथवा ] बहुत भारी रज़ाई मैं [ दबकने से ] किसी प्रकार नहीं कटता ॥ रहि न सकी सब जगत मैं सिसिर-सीत कै त्रास ।। गरम भाजि गढ़वै भई तिय-कुच अचल मवास ॥ ३४४ ॥ गरम = गरमी ।। गढ़वै =गढ़वर्तिनी ॥ मवास = समरक्षित तथा अभेद्य वासस्थान ।। ( अवतरण )-शिशिर ऋतु के वर्णन में किसी भुंगारी पुरुष की उकिं है ( अर्थ )--शिशिर के शीत के डर से गरमी सब जगत् में [ और कहीं ] नहीं रह सकी, [ अतः वह ] भाग कर स्त्री के कुच-रूपी अचल मवास ( अभेद्य शरणालय ) में ‘गढ़वै' ( गढ़-निवासिनी ) हो गई ( अर्थात् उष्णता अब केवल स्त्रियों के कुचों में मिल सकती है)। झूठे जानि न संग्रहे मन मुह-निकसे बैन । याहीतै मानहू किये बात क विधि नैन ।। ३४५ ॥ झूठे = यह शब्द संस्कृत शब्द 'जुष्ट' से बना है, जिसके दो अर्थ होते हैं-( १ ) सुखद, मनोरंजक, सुहावन इत्यादि । ( २ ) उच्छिष्ट भोजन । भाषा में यह शब्द 'झूठ' अथवा 'झूट' रूप से मीठे, मनोरंजक किंतु मिथ्या वचन के अर्थ में प्रयुक्त होता है, और 'झूठ' अथवा 'जूठ' रूप से उच्छिष्ट भोजन के अर्थ में । विहारी ने यहाँ इन दोनों ही प्रथा में ‘झूठे' शब्द का प्रयोग किया है । मुख से निकले हुए, अर्थात् उगले हुए, होने के कारण वचनों को झूठा, अर्थात् उच्छिष्ट, कह कर श्लेष-बल से उनका झूठा, अर्थात् मिथ्या, होना भी कह दिया है। क्योंकि मुख से कहे हुए वचन बहुधा मिथ्या भी होते हैं । इस श्लेष से उनका अभिप्राय यह है कि मुख के वचन, जो कि प्रायः मिथ्या होते हैं, उच्छिष्ट भोजन के समान हैं, अतः उनका संग्रह मन ने नहीं किया ॥ न संग्रहे::: सादर ग्रहण नहीं किए, अर्थात् विश्वास-योग्य नहीं समझे ॥ बात की। ( १ ) वृत्तियों के निमित्त, जीविका के निमित्त । ( २ ) बात के निमित्त ॥ ( अवतरण )-कवि की प्रौढोकि है कि संसार मैं झूठ बोलने का प्रचार अधिक हो गया है। अतः अब मन वचनों की प्रतीति नहीं करता । मन के सच्चे भाव अाँख से प्रकट होते हैं । ( अर्थ )-मुंह से निकले हुए वचन मन ने झूठे (१. उच्छिष्ट भोजन ।२. मिथ्या) समझ कर संग्रह नहीं किए [ १. उन्हें अपने काम का नहीं समझा । २. उन पर भरोसा नहीं किया )। माने। इसी कारण ब्रह्मा ने [ सच्ची ] ‘बातनु' ( १. जीविकाओं । २. बातों ) के निमित्त नयन बनाए हैं। सुघर-सौति-बस पिउँ सुनत दुलहिनि दुगुन हुलास । लखी सखी तन दीडि° करि सगरब, सलज, सहास ॥ ३४६ ॥ १. गई ( ३ ) । २. जूठे (१) । ३. मानो ( ३, ५) । ४. बिधि वातनु क ( ३, ५ ) । ५. पिय ( २, ३, ५) । ६. डीठि ( २, ४, ५)।