विहारी-रत्नाकर | इस दोहे मैं 'तरुन' शब्द का अर्थ मानसिंह तथा कृष्ण कवि ने सूर्य कर लिया है । अनवर चंद्रिकाका ने भी यही अर्थ उचित समझ कर 'तरुन' के स्थान पर पाठ ही ‘तरनि' कर डाला है। और, फिर उनकी देखा-देखी प्रायः अन्य टीकाकारों ने भी ‘तरनि' पाठ रख कर उसका अर्थ सूर्य किया है। पर ईसवीख़ाँ ने अपनी टीका मैं 'तरुन' का अर्थ यौवन ही माना है, और वही ठीक है । प्रभुदयालु पाँडे ने भी ‘तरुन' पाठ, और उसका अर्थ यौवन, रक्खा है ॥
गनती गनिबे हैं रहे, छत हैं अछत-समान ।।
अलि, अब ए तिथि औम लौ परे रहौ तन प्रान ॥ २७५ ।। छत ( क्षत )= क्षय हुए । अछत = अक्षय ॥ तिथि औम ( अवम तिथि )-जो तिथि जिस दिन सूर्य के उदय के समय रहती है, वहीं तिथि उस दिन दिन भर मानी जाती है, चाहे सूर्योदय के बहुत थोड़े ही काल के पश्चात् दूसरी तिथि का प्रारंभ हो जाय । बहुधा ऐसा होता है कि किसी दिन सूर्योदय के समय जो तिथि रहती है, वह पल ही दो पल में बात जाता है, और दूसरी तिथि का प्रारंभ हो जाता है। यदि यह दूसरी तिथि दूसरे दिन के सूर्योदय के पूर्व ही व्यतीत हो जाती है, और दूसरे दिन सूर्योदय के समय तीसरी तिथि ग्रा जाती है, तो दूसरे दिन उस तीसरी तिथि हा का मान होता है। दूसरी तिथि, प्रथम दिन के सूर्योदय के पश्चात् से ले कर दूसरे दिन के सूर्योदय के पूर्व तक रहने पर भी, गिनती में नहीं आती, और न किसी दिन मानी ही जाती है। उसका उतने समय तक रहना न रहने के समान ही हो जाता है । इसी तिथि को अवम तिथि कहते हैं ।
| ( अवतरण )-ओषितपतिका नायिका प्रियतम-वियोग में अपने प्राणों का रहना न रहना बरापर समझ कर सखी से कहती है
( अर्थ )-हे सखी, [ प्रियतम के विरह में मेरे क्षीण प्राण ] गिनती [ में ] गिनने ( गिने जाने ) से [ तो ] रहे ( वंचित हो गए ), [ और ] न रहते हुए भी रहने के समान हैं । अब [ यदि इस पर भी ] ये प्राण शरीर में [ निर्लज्जता धारण कर के हठात् रहें ही, तो ] अवम तिथि की भाँति [ भले ही ] पड़े रहो ।
सबै हँसत करार है नागरता के नौवें ।
गयौ गरबु गुन कौ परेवु गरें गैरै गर्दै ॥ २७६ ।। नागरता = नगरनिवासीपन, चातुरा, गुण संपन्नता । आँवा = ग्रामीण, गुणहीन, अगुणग्राही ।।
( अवतरण ):-कवि की प्रास्ताविक उक्लि है कि अगुणग्राहक में बसने से गुणी की हँसी होती है
( अर्थ )-[ नगरनिवासी पर गाँव के ] सव के सव [ लोग ] नागरता के नाम [ ही] पर ताली बजा बजा कर हँसते ह ( अर्थात् 'यह देखी नागर हैं' इत्यादि कह कर उसके नाम ही की हँसी उड़ाते हैं, अथवा उसकी किसी नागरता अर्थात् चातुरी काव्य, संगीत
१. अब पत्रा तिथि श्रम स ( ३, ५ ) । २. नाँम ( ३, ५ ) । ३. बसत ( १, २, ४ )। ४. गवेले ( ३, ५) । ५. गाँम ( ३, ५ )।
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