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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर हूँ रहि, हाँ हाँ, सखि, लख; चढ़ि न अटा, बलि, बाल। सबहिनु बिनु हाँ ससि-उदै दीजतु अरघु अकाल ॥ २६८॥ ( अवतरण )-नायिका ने गणेशचतुर्थी का व्रत किया है। चंद्रमा देखने को वह बार बार अटारी पर चढ़नी है। सखी उसका श्रम बचाने के निमित्त उसको फिर चढ़ने से रोकती है, किंतु यह कह कर नहीं , तुझे, निराहार रहने के कारण, श्रम होगा । क्याँक यदि वह यह कह कर रोकती, तो नायिका कदाचित् यह कह देती कि नहीं, मुझे श्रम नहीं होगा, फिर तू भी तो निराहार ही है। वह नायिका के रूप की प्रशंसा करती हुई यह कह कर रोकती है कि तेरे अटा पर चढ़ने से अन्य स्त्रिय अकाल अर्घ दे देती हैं, अतः तुझको भी दोष-भागिनी होना पड़ता है-- | ( अर्थ ):-हे सखी, तू [ यहाँ ] रह, मैं ही [ चंद्रमा ] देख आऊँ । हे बाला, मैं तेरी बलिहारी जाती हैं, [ 1 ] अटा पर मत चढ़ ।[क्योंकि तेरा मुख चंद्रमा के समान प्रकाश मान है, अतः तेरे अटा पर चढ़ने से चंद्रोदय का भ्रम हो जाता है, जिससे ] शशि के उदय दिना ही सभों से अकाल अर्घ दे दिया जाता है [ जो कि दूषित है ]॥ दियौ अरघु, नीचें चलौ, संकटु भर्ने जाइ । सुचिती है औरी सबै ससिहँ बिलो आइ ॥ २६९ ॥ ( अवतरण )—यह दोहा भी गणेशचतुर्थी के व्रत के अवसर का है। नायिका चंद्रमा को अर्घ दे कर अटारी पर ठहर गई है । सखी उसको शीघ्र नीचे ला कर भोजन कराना चाहती है, क्यकि वह दिन भर की भूखो है। पर नायिका से यह बात कहते समय वह, उसके रूप की प्रशंसा करती हुई, अन्य बिर्यों पर अनुग्रह करने का अनुरोध करती है, जिसमें कि वह शीघ्र उतर चले । वह संकट तोड़ने वालियाँ मैं अपने को तथा अन्य सखियाँ को भी मिला लेती है, जिसमें कि नायिको उनके कष्ट का भी विचार करे (अर्थ) - अर्घ [ तो ] दिया जा चुका, [ अव ] नीचे चलो, [ जिसमें वहाँ ] चल कर [ हम लोग ] संकष्ट [ चौथ का व्रत ] तोड़े ( पूरा करें, अर्थात् कुछ खाएँ पिएँ), [ एवं ] और सब [ स्त्रियाँ ] भी सुचत्ती ( द्विविधा-रहित ) हो [ अपनी अपनी अटारी पर ] कर चंद्र-दर्शन करें। [ भावार्थ यह है कि जब तक तु अटारी पर रहेगी, तब तक अन्य स्त्रियों को दो चंद्र दिखाई देंगे, अतः उनके मन में द्विविधा रहेगी ] ॥ ‘संकटु भानै जाइ' का अर्थ यह भी हो सकता है कि हम लोग चल कर दिन भर के व्रत का कष्ट निवारित करें । ललित स्थाम लीला, ललन, बढ़ी चिबुक छबि दून। मधु-छाक्यौ मधुकरु पखौ मनौ गुलाब-प्रसून ॥ २७० ॥ १. ससि ( २ ), सिसि ( ५ ) । २. लखें ( २ ) । ३. भान ( २ ). भाँजो ( ३, ५ ) । ४. औरहि ( ३ ), और ही (५) । ५. विलोकी ( १ ) ।