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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-रत्नाकर 123४४१ १०६ कृष्ण काव की टीका को छोड़ कर अन्य सब प्राचीन का में ‘बासर' पाठ मिलता है, और प्रभुदयालु पाँडे की का में ‘बाखरि’ पाठ है । हमारी समझ में 'बासर' पाठ रखने से अर्थ बहुत स्पष्ट होता है । पर पॉचे प्राचीन पस्तकों में ‘बाषरि' पाठ होने के कारण यही पाठ इस संस्करण में रखा गया है । लाग—बिहारी ने वर्ष शब्द का यहाँ स्त्रीलिंग-प्रयोग किया है,। ब्रज में ऐसा प्रयोग बोलचाल में सुनने में भी आता है । पर कविता में इसका प्रयोग प्रायः पुलिंग ही रूप से देखने में आता है । सतसैया भर में ‘बरष' शब्द और कहीं नहीं आया है. जिसस इसका मिलान हो सकता । हमारी पाँच प्राचीन पुस्तकों में यही पाठ है, पर अमरचंद्रिका में इसृका पाठ ‘लागो' एवं देवकीनंदन की टीका में ‘बीतो' मिलता है । अन्य सब टीकाकारों ने इसका पाठ लागे रक्खा है ॥ विहान=-यतीत होने ॥ इस पाठ के अनुसार अवतरण और अर्थ-- ( अवतरण १ )-दक्षिण नायक, जिसकी कई पत्नियाँ हैं, किसी स्वतंत्र पड़ोसिन पर ऐसा अनुरझ हो गया है कि उसी के घर पड़ा रहता है, और अपनी पत्नियाँ के यहाँ कई कई दिन न आता। अतः वे सब आपस मैं कहती हैं | ( अर्थ १ )--दक्षिण [ होकर भी हमारे ] पति ने [ उस ] 'वाम' (दुष्ट स्त्री) के चश में हो अन्य स्त्रियाँ भुला दौं। [ हम लोगों को तो अब ] एक ही घर के [ अंतर के ] विरह में वर्ष बीतने लगा ( अर्थात् यद्यपि नायक परदेश नहीं गया है, एक ही घर के अंतर पर है, तथापि हम लोगों के उसका दर्शन वर्ष वर्ष भर तक, अर्थात् बहुत बहुत दिनों तक, नहीं होता ) ॥ ‘बासर' पाठ रखने से यह अवतरण और अर्थ होता है-- ( अवतरण २ )-दुती नायिका से कहती है कि हे वामा, यद्यपि वह नायक दक्षिण अर्थात् अनेक सियों का वल्लभ है, तथापि तेरी वामता के वश में पड़ कर उसका सारा दक्षिणपन जाता रहा हैअन्य स्त्रियाँ उसने भुला दी हैं, और तेरे विरह में उसका एक दिन भी वर्ष के समान बीतता है ( अर्थ २ )-[ उस ] दक्षिण नायक ने [ तुझ ] 'वाम' के वश में हो कर अन्य स्त्रि भुला दी है । [उनको तेरे ] एक ही दिन के विरह मैं [ एक ] वर्ष बीतने लगा है ॥ इस पाठ तथा अर्थ मैं ‘बाम का अर्थ संदरी करना चाहिए । | सोरठा मोहूँ दीजै मोषु, ज्याँ अनेक अधमनु दियौ । जौ बाँधै ही तोषु, तौ बाँधौ अपनै गुननु । २६१ ॥ मोषु ( मोक्ष )=भव बंधन से छुटकारा । यह शब्द भाषा में स्त्रीलिंग माना जाता है, पर बिहारी ने इसका संस्कृत के अनुसार पुलिंग-प्रयोग किया है । गुननु=गुणों से । ‘गुननु' शब्द का प्रयोग ‘बाँधौ' शब्द के साथ भट्टा ही उपयुक्त है, क्योंकि गुण शब्द का अर्थ रस्सी भी है ।। ( अवतरण )-किसी भक्त का वचन श्रीभगवान् से ( अर्थ )-[ हे अधमोद्धारण, 3 जिस प्रकार [ करुणा कर के अपने ] अनेक अधम के मोक्ष दी है [ उसी प्रकार अर्थात् अपनी करुणा से ] मुझे भी दीजिए । [ पर ] यदि { आपको मुझे ] बाँधने ही मैं ( बंधन में रखने ही में ) तोप ( सतोष ) हो,