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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु थीति यहार । अब, अलि, रही गुलाब मैं अपत, कँटीली हार ।। २५५ ॥ बहार = वसंत ऋतु ।। अपत= पत्र-रहित ।। | ( अवतरण )-किसी गलित-यौना खी, नष्ट संपत्ति मनुष्य, विगत सुख राज्य इत्यादि पर यह अन्योक्रि है | ( अ ) --हे भ्रमर, जिन दिनो [ तुने | व | सुदर तथा सुगंधित ] पुष्प देखे थे, वह बहार ( व संत ऋतु ) ! तो ] बीत गई । अव [ ता] गुलाब के वृक्ष में विनः पत्ते को [ तथा ] कंकित डल ( शाखा ) रह गई है [ अब इससे दुःख छे. सुख की भ.घना नहीं है ] ॥ मैं दर्जी के यार हुँ', इन कित ति करौट। | पंखुरी लंगै गुलाब की रेहगात खरंट ।। २५६ ।। पैखुरं = पंखड़ी, पत्ती ।। ( अवतरण )--विश्रब्धनवोढ़ा नायिका नायक ती ओर से मुंह फेर कर सोती है । तथ सखो उसे डर दिखा कर तथा उसके गात की कोमलता की प्रशंसा कर के नायक की और उसका मुंह कराना चाहती है| ( अर्थ )-मैंने तुझको कै बार वरजा । [ पर तू नहीं मानती । देख सँभल, ] इस ओर कहाँ करवट ले रही है । [ एरा मत कर, नहीं तो शय्या के किनारे लगाई गई इन गुलाब की पंखड़ियों में से किसी 1 गुलाब की पंखड़ी के लग जाने से [ तेरे कोमल ] गात्र में खरोट पड़ जायगी ॥ नीची नीची निट दीठे कुही लौं देर । उठे ऊचें, नीच दया मनु कुलगु कपि, झार ।। २५७ ॥ कुही= एक प्रकार का छोटा बाज । यह जब किमी चिड़िया का शिकार करता है तो पाहेल कुछ देर तक उसके नीचे नीचे उड़ा करता है, और फिर एकाएकी ऊपर उठ कर उस पर टूट पड़ता और उसको छोप लेता है। फिर उसको झकझोर कर, जिसमें वह बदम हो जाय, नीचे का श्रार झा क से उतरता है । नोची क्षियों के नीचे की ओर झाक से उतरने का नाचा देना कहते हैं। इसी का गाना भी बोलते हैं। कुलिंग = एक प्रकार की चिड़िया, जिसका भृग तथा फिंगा भी कहते हैं । झपि - झाँप कर, छोप कर ।। झरि=झकझोर कर ।। ( अवतरण )-नायिका की दृष्टि, नायक की ओर, नीची ही नीची आ कर और एकाएक ऊपर . १. सो (४) । २. तें ( २, ४) । ३. कर ( १, २ ) । ४. गंई ( २ ) । ५. परहें ( ३ ) । ६. नीचीए ( १, ४, ५ ), नीची ही ( २ ) । ७. नीचे ( ४) । ८. कुलंगु ( १ ), कुलंग ( २, ४)। १. भकझोर (४) ।