पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१२८

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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर नहीं ; जिस प्रकार हरावल की फ़ौज हलकी [ होने से ] गोल ( मुख्य सेना ) पर भीड़ ( लड़ाई का भार ) पड़ती है ॥ नायिका के नयन मुख्य सेना हैं, और पूँघट हरावल । नायफ की मुख्य सेना नेत्र ने धावा किया । हरावल के हलके होने के कारण नायक की सेना रुक न सकी, अतः दोन सेनाएँ झमाझम भिड़ गईं ॥ -- -- केसर केसरि-कुसुर के रहे अंग लपटाई ।। लगे जानि नख अनखुली कत बोलत अनखाइ ।। १९९ ॥ केसर= किंजल्क ।। अनखुली = अपने हृदय के भाव को गुप्त कि: हुए । (अवतरण )—खंडिता नायिका से सखा का वचन-- ( अर्थ )-[ नायक के ] अंग में [ तो ] केसर के फूल के किंजल्क लगे हुए हैं ।[तु उनको अन्य स्त्री के ] नख लगे हुए जान कर अनखुली (विना प्रकट रूप से कारण जनाए) क्यों अनखा कर (रोष-युत, उत्साह-रहित, हो कर ) बोलती है ॥ हग मिहचत मृग-लोचनी भख, उलटि भुज, बाथ । जानि गई तिय नाथ के हाथ परस हाँ हाथ ॥ २०० ॥ बाथ-इस शब्द का अर्थ मानासिंह की टीका में हाथ तथा कृष्ण कवि की टीका, रसचंद्रिका, हरिप्रकाश, लालचंद्रिका और प्रभूदयाल की टीका में ग्रैकवार लिखा है, एवं देवकीनंदन की टीका में इसका अर्थ पहुँचा बतलाया गया है । इस दोहे के अतिरिक्त सतसई में और कहीं इसका प्रयोग नहीं हुआ है, और न और कहीं इसका देखन हमें स्मरण ही आता है । इस दोहे में इसका अर्थ अंक अच्छा प्रतीत होता है। अतः हमने यही अर्थ माना है ॥ ( अवतरण )--नायक ने पीछे से आ कर कौतुकवश नायिका की आँखें अपने हाथ से बंद कर ली हैं। नायिका ने नायक को उसके हाथ के स्पर्श ही से पहचान कर, अपनी भुजाओं को उलट, उसे अंक भर लिया है। सखा-वचन सखी से | ( अर्थ )-[ नायक के पीछे से आ कर ] दृग मीचते ही मृगलोचनी [ नायिका ] ने भुजाओं को उलट कर [ नायक को ] बाथ ( अंक ) में भर लिया । [ वह ] स्त्री हाथ के स्पर्श ही से [ अपने ] नाथ के हाथ पहचान गई ॥ | इस दोहे में दो बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं ( १ ) नायिका को नायक से ऐसा प्रेम था कि यद्यपि उसने उसे देखा नहीं, तथापि स्पर्श ही से उसके हाथ उसने पहचान लिए । (२) नायिका मैं ऐसा स्वकीयत्व था कि जब उसने रफ् से अपने नाथ को पहचान लिया, तभी अंक भरा ॥