बिहारी-रत्नाकर यहाँ खोचन का रूपक अर्थांक्षिप्त दलाल से है॥ चिलक, चिकनई, चटक स लफंति सटक लौं आइ । नारि सलोनी साँवरी नागिनि ल डसि जाइ ॥ १९६ ।। चिलक= चमक ॥ चटक= चटकीलापन, चटकमटक अथवा चंचलता ॥ लफति = लचकती हुई ॥ सटक=पतली तथा लचकीली छड़ी ।। ( अवतरण )-नायक किसी साँवली स्त्री की सलोनी मूर्ति पर मोहित हुआ है, और किसी दूती को उसे दिखला कर कहता है ( अर्थ )-चमक, चिकनाई [ तथा ] चटकीलेपन से सटक की भाँति लचकती हुई [ इस ओर ] आ कर [ वह ] सलोनी साँवली स्त्री नागिन सी डस कर जा रही है ॥ तोरस-राँच्यौ अन-बस केही कुटिल-मति, कूर । जीभ निबौरी क्यों लगै, बौरी, चाखि अँगूर ॥ १९७॥ तोरस-राँच्यौ = तेरे सुख के स्वाद से रचा हुश्री अर्थात् परचा हुआ ॥ कुटिल-मति =टेढी बुद्धि वाले अर्थात् खोटे लोग, जो तुझमें तथा नायक में बिगाड़ कराना चाहते हैं ।। कूर ( कर ) =निर्दय ॥ निबौरी= निंब वृक्ष का फल, निमकौड़ी ॥ | ( अवतरण )–नायिका नायक को अन्य स्त्री पर अनुरक़ सुन कर रुष्ट है । सखी उसको, उसकी प्रशंसा करती हुई, समझाती है . ( अर्थ )-तेरे रस से परिचित को खोटे [ तथा ] निर्दय [ लोग ] दूसरी के वश में । भले ही ] कहो ( कहा करें, पर तू उनका विश्वास मत कर ) । अरी बावली, [ तू यह तो समझ कि ] अंगूर चख कर [ फिर ] निमकौड़ी जीभ कैसे लग सकती है ( जीभ को अच्छी कैसे लग सकती है ) ॥ जुरे दुहुनु के डग झसकि, रुके न झीनै चीर । हलुकी फौज हरौल ज्यौं पैरै गोल पर भीर ।। १९८॥ जुरे= मिल गए, भिड़ गए ॥ झमक= शीघ्रता से ॥ हरौल ( तुक हरावल ) = सेना का वह मोटा भाम, जो मुख्य सेना के आगे रहता है, जिसमें शत्रु एकाएक मुख्य सेना पर आक्रमण न कर सके । गोल (तुर्की गोल )=कुंड । यहाँ इसका अर्थ मुख्य सेना है ॥ | ( अवतरण )–नायक को देख कर नायिका ने पूँघट काढ़ लिया है। पर पट के झीने होने के कारण नायक के नेत्र उस बेध कर नायिका के नेत्र से जा मिले हैं, और दोन के नेत्र में परस्पर रा-भाव, कटाक्ष होने लगे हैं। उसी का वर्णन सखा सखी से करती है ( अर्थ )-दोनों ( नायक नायिका ) के नेत्र झमाझम भिड़ गए, झीने पट से रुके १. लफत ( २ ) । २. लकुट ( २ ) । ३. कहै ( २ ), कहे ( ५ ) । ४. परति ( २ ), परत ( ५ )।