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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर ६३ रूपी रस्सी बाँध रक्खी है। [ उस पर ] चढ़ कर दोनों के मन दौड़ने में डरते नहीं, [ और ] नट की भाँति इधर उधर आते जाते हैं ॥ रस्सी पर चलने वाले नट दो बाँस गाड़ कर उनमें रस्सी बाँध देते हैं, और उस पर चढ़ कर बेखटके उधर से इधर और इधर से उधर आते जाते हैं। नायक नायिका के मन के पक्ष मैं ‘न डरात' का अर्थ होगा, किसी के देख लेने की शंका नहीं करते ॥ झटक चढ़ात उतरति अटा, नैक न थाकति देह । भई रहात नट कौ बटा अटकी नागर-नेह ॥ १९४ ॥ झटकि= झटके से, झपट कर, फुर्ती से ।। बटा=गोला, गेंद, च । चकई डोरी में बाँध कर फिराई जाती है । वह दो प्रकार की होती है-एक तो हलकी अौर चिपटी और दूसरी कुछ भारी, मोटी और गोलाकृति, जिसे बट्टा भी कहते हैं । अटकी = फँसी हुई, बँधी हुई ॥ नेह= स्नेह । यहाँ इसका अर्थ प्रेम-रूपी डोरी करना चाहिए । | ( अवतरण )-नायक कहाँ खड़ा है। नायिका बार बार उसको देखने के लिए अटारी पर चढ़ती है। उसी का वर्णन, नट की चकई के सादृश्य से, सखी सखी से करती है | ( अर्थ )-[ वह ] झटक कर' ( झपट कर, झटके से ) अटारी पर चढ़ती उतरती है। [ उसकी ] देह किंचिन्मात्र भी थकती नहीं ( थाकत नहीं होती, ठहरती नहीं )। नागर (चतुर नायक) के स्नेहं-रूपी डारे में अटकी हुई [वह] नट की चकई हुई (बनी) रहती है। | ‘बटा' का अर्थ अन्य टीकाकारों ने गैंद किया है, और वस्तुतः बटा का अर्थ गैंद है भी । पर ‘झटक', 'चढ़ति', ‘उतरते', 'अटा', ‘थाकति', तथा ‘अटकी', इन शब्द के प्रयोग पर ध्यान देने से यहाँ ‘बटा' का अर्थ चकई ही करना विशेष संगत है। ‘बटा' शब्द ‘वृत्त' शब्द का अपभ्रंश है । इस दोहे का भाव २०६-संख्यक दोहे के भाव से बहुत मिलता है ।। लोभ-लेगे हरि-रूप के करी सॉट जुरि, जाइ । हौं इन बेची बीच हीं, लोइन बड़ी बलाइ ॥ १९५ ॥ रूप={ १) सौंदर्य । (२) रूपा अर्थात् रुपया ॥ साँटि =( १ ) हेल-मेल । ( २ ) क्रय-विक्रय की बातचीत ॥ जुरि=(१) साक्षात् कर के । ( २ ) मिल कर ॥ बीच हीं =विना मुझसे बातचीत किए ही, विना मुझसे पूछे ही, विना मेरी अनुमति ही के । बलाइ = विपत्ति ।। ( अवतरण )-पूर्वानुरागिनी नायिका का वचन सखी से ( अर्थ )-[ हे सखी, ये मेरे ] लोचन-रूपी दलाल बड़ी बला हैं। इन्होंने हरि के रुप-रुपी रुपए के लोभ में लगे हुए ( लग कर ), [ उनके पास ] जा कर, [ और उनसे ] मिल कर सट्टा कर लिया, [ और ] मुझे बीच ही मैं ( विना मेरे जाने ही ) बेच डाला ॥ १. झमक ( २ ) । २. भरे (२) । ३. साट (४)।