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बिहारी-रत्नाकर

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बिहारी-रत्नाकर ( अवतरण )–लक्षिता नायिका की चितवन से उसको लक्ष्य लक्षित कर के सखी कहती है ( अर्थ )-[ तेरी आँखें ] रणक्षेत्र के सुभट की भाँति डट कर ( निर्भय रूप से ) [ अपने प्रतिद्वंद्वी नायक पर ] पहुँच जाती हैं। सब ( सर्वसाधारण ) [ उनको ] रोक नहीं सकते ( अटका नहीं सकते )। लाखों [ मनुष्यों ] की भीर में भी [ तेरी ] आँखें वहीं [ जहाँ तेरा लक्ष्य नायक है ] चली जाती हैं ।। युद्ध मैं जब कोई सुभट लड़ने को अाता था, तब वह विपक्ष की सेना के अध्यक्ष ही से भिड़ना चाहता था, और यद्यपि व अध्यक्ष लाख सैनिक की भीड़ से घिरा रहता था, तथापि वह सुभट उस भीड़ को काटता छाँटता उस तक पहुँचने की चेष्टा करता था। यदि वह सुभट बड़ा प्रवल तथा पराक्रमी होता था, तो उसको सामान्य सैनिक रोक नहीं सकते थे, और वह विपक्षी सेना के अध्यक्ष तक पहुँच जाता था ।


---- सरस सुमिल चित-तुरंग की करि करि अमित उठान ।

गोइ निबाहैं जीतियै खेलि प्रेम-चौगान ॥ १७८॥ सरस=( १ ) रसले । ( २ ) सधे हुए तथा पुष्ट । सुमिल = ( १ ) अनुरागी । ( २ ) गोल में मिल कर चलने वाले ॥ उठान= ( १ ) उमंगें । ( २ ) कावे ।। गोइ निबाहें = ( १ ) छिपा कर निर्वाह करने से । ( २ ) गोइ ( गेंद ) को निर्दिष्ट सीमा तक वहन करने से । चौगान---फ़ारसी भाषा में एक प्रकार के गेंद के खेल को चौगान कहते हैं, जो अँगरेज़ी खेल पोलो के सदृश घोड़ों पर चढ़ कर खेला जाता है ॥ ( अवतरण )-सखी नायिका को शिक्षा देती है कि प्रेम को छिपा कर निर्वाह करने से जीत होती है ( अर्थ )-चित्त-रूपी सरस [ तथा सुमिल घोड़े की अमित ( अनंत ) उठाने कर कर के, गोड निबाह कर ( १. छिपा कर निर्वाह करने से । २. गोइ (गेंद) को निर्दिष्ट सीमा तक वहन करने से ), खेल कर प्रेम-रूपी चौगान जीता जाता है। हँस हँसि हेरति नवल तिथे मद के मद उमदाति ।। बलकि बलकि बालति बचन,ललकि ललकि लपटाति ।। १७९ ॥ मद= मदिरा ॥ मद =नशे से । उमदाति =उन्मत्त होती हुई, झूमती हुई । बलकि बलकि= बहक बहक कर ॥ ललकि ललकि=उमंग से लज्जा तथा भय छोड़ छोड़ कर ॥ ( अवतरण )—सखिय ने नवोढ़ा नायिका को मदिरा ले मतवाला कर के नायक को उसके पास बुला दिया है । अब जो चेष्टाएँ नायिका नशे मैं करती है, उनका वर्णन कोई सखी किसी सखी से करती है-- " ( अर्थ )-[ देख, यह ] नवीन स्त्री, मदिरा के नशे से झूमती हुई, हँस हँस कर [चारों ओर ] देखती है, बहक बहक कर वचन बोलती है, [ और नशे की तरंग में ] उमंग से . लज्जा तथा भय छोड़ छोड़ कर [ नायक से ] लिपटती है ॥