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बिहारी-रजकिर | ( अवतरण )-परस्परानुरक नायक नायिका कुछ ऐसे अंडस मैं पड़े थे कि यद्यपि विरह से व्याकुल रहते थे, तथापि मिल नहीं सकते थे। अंत को नायिका के प्राण प्रयाण कर गए । नायक अत्यंत अधीर हो कर बिलख रहा है। उसके अंतरंग मित्र तथा सखियाँ इत्यादि उसको धैर्यावलंदन करने के लिए समझाते हैं ( अर्थ )-विरह [ के दुःख भोगने] से [तो उसके लिये ] प्रत्युत मरना [ ही ] अच्छा था, यह [ तुम ] निश्चय कर के समझ ले, [ क्योंकि ] मरने से एक का दुःख [ तो ] मिट जाता है, [ पर ] विरह से दोनों के दुःख होता है, [ अतः तुमको उसके मरने पर दुःख न करना चाहिए, प्रत्युत यह समझ कर धैर्य धरना चाहिए कि चलो, वह बेचारी तो दारुण दुःख से छूट गई । हम ते पुरुष शरीर है, किसी न किसी प्रकार झेल ही लगे, पर उस कोमलांगी, प्राण से भी अधिक प्रिय अबला के निमित्त विरह-दुःख सहना बड़ा ही कठिन था । इसके अतिरिक्त यह विरह-दुःख तो अनिवार्य ही था, इसलिये यदि दोनों में से एक उससे मुक्त हो गया, तो अच्छा ही हुआ ] ॥ हरषि न बोली, लखि ललनु, निरखि अमिलु सँग साथु । अखिनु हाँ मैं हँसि, धख सीस हियँ धेरि हाथु ॥ १४९ ॥ अमिलु= बेभेल, जिससे अपना मन नहीं मिला है । ( अवतरण )-सखी सखी से क्रियाविदग्धा नायिका के भाव का वर्णन करती है ( अर्थ )-[ नायिका अपने अथवा नायक के ] संग में अमिल ( विना मन मिले हुए लोगों का ) साथ देख कर, नायक को लक्षित कर के, हर्ष-पूर्वक कुछ बोली नहीं ( बोल न सकी )[ पर उसने ] आँखें ही में हँस कर, हाथ को छाती पर रख सिर पर रक्खा ॥ | आँख ही मैं हँसने से उसने नायक के दर्शन से प्रसन्नता प्रकट की, और हृदय पर हाथ रखने से यह सूचित किया कि मैं तुमको अपने हृदय में स्थापित करती हूँ। फिर सिर पर हाथ रखने से यह व्यजित किया कि तुमने जो चेष्टा-द्वारा मिलने की प्रार्थना की, वह शिरोधार्य है; पर इस सुख की प्राप्ति भाग्य के हाथ है ॥ को जानै, है है कहा; ब्रज उपजी अति आगि । मॅन लागै नैननु लँगै, चले न मग लैंगि लागि ॥ १५०॥ अति अगि= बड़ी भारी आग । बड़ी विलक्षण, अर्थात् बहुत शीघ्र तथा बहुत सहज में सुलगने वाली और न लगने योग्य वस्तु में भी लग जाने वालः, आग ॥ मन =( १ ) हृदय । ( २ ) मानस, मानसरोवर । मानसरोवर से यहाँ अभिप्राय ताल मात्र से है । मन शब्द में श्लिष्टपद-मूलक रूपक हैं । अतः इसका अर्थ मन-रूपी ताल होता है । इस शब्द का ऐसा ही प्रयोग बिहारी ने १८वे दोहे में भी किया है ॥ नैननु-इस शब्द के भी यहाँ दो अर्थ हैं-( १ ) आँख । ( २ ) नमित होने वाले, अर्थात् कोमल, पदाथ ॥ लगें-इस . १. सब ( २, ४ ) । २. अँखियनि ( २ ) । ३. पै ( २ ) । ४. मनु (२) । ५. लागै ( १, २ )। ६. लगो (४) । ७. चलौ ( १ ), चलो ( ४ ) । ८. सँग ( ४ )।