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बिहारी-रत्नाकर आए आपु, भली करी, मेटन मान-मरोर । दूरि करौ यह, देखिहै छला छिर्गुनिया-छोर ॥ १३६ ॥ मान-मरोर= मान की ऐंठे । छिगुनिया= छोटी अँगुली, कानी अँगुली ॥ ( अवतरण )-नायिका ने नायक को अपराधी समझ कर मान किया है । नायक उसको मनाने आया है, पर शीघ्रता मैं अन्य स्त्री का छल्ला, जो छोटा होने के कारण उसकी कानी अँगुली के ऊपर ही अटका है, पहने चला आया है। सखी उससे कहती है कि इसे उतार डालिए, नहीं तो वह इसे देख कर तुम्हारा अपराध निश्चित कर लेगी-- | ( अर्थ )-मान-मरोड़ मिटाने [ के निमित्त जो ] आप आए, [ सो आपने ] अच्छा किया । [ पर ] इसको ( इस छल्ले को ) दूर कर दीजिए, [ नहीं तो वह यह ] छल्ला छिगुनिया के छोर ( अग्र भाग ) पर देख लेगी [ और इससे यह अनुमान कर लगी कि तुम सचमुच अपराधी हो । फिर मानना तो दूर रहा, और भी ऐंठ जायगी ]॥ मेरे बुझत बात तू कत बहरावति, बाल । जग जानी विपरीत रति लखि बिंदुली पिय-भाल ॥ १३७ ॥ बहरावति =टालती है ॥ बिंदुली = टिकुली ॥ ( अवतरण )-दंपति ने अपने रूप का परिवर्तन कर के, अर्थात् नायक ने नायिका का और नायिका ने नायक का रूप धारण कर के, विपरीत रति की थी । नायक ने अपना सब आरोपित श्रृंगार तो उतार डाला है, पर टिकुली भूल से भाल पर लगी रह गई है, जिससे सखी रूप-परिवर्सम तथा विपरीत रति का अनुमान कर के मध्या नायिका से परिहास करती है | ( अर्थ )-है बाला, मेरे पूछते समय तू बात को क्यों बहलाती है । प्रियतम के भाल में बिंदुली देख कर [ मैंने ही नहीं, बरन् ] संसार ने ( सब देखने वालों ने ) [ तेरी ] विपरीत रति जान ली है ॥ फिरि फिरि बिलखी ह्र लखति, फिरि फिरि लेति उसासु । साईं ! सिर-कच-सेत ल बीत्यौ चुर्नति कपासु ॥ १३८॥ बिलखी =दुखी ॥ उसासु ( उत्+श्वास ) = लंबी सॉस, जो कि मनुष्य दुःख अथवा सोच में लेता है । भाषा के कवियों ने इस शब्द को पुलिंग तथा स्त्रीलिंग दोनों रूपों में प्रयुक्त किया है। बिहारी ने भी इसका दोनों प्रकार से प्रयोग किया है । इस दोहे के अतिरिक्त सतसई के और अाठ दोहों में यह शब्द आया है। २६२, ३३४, ४४६, ४८७, ५०७, ५३४, ५५३ तथा ६६० अंकों के दोहे द्रष्टव्य हैं। इनमें से कई दोहों में इसका स्त्रीलिंग-प्रयोग हुआ है, और कई में पुल्लिंग-प्रयोग । इस दोहे में इसका पुलिंग-प्रयोग है ॥ साईं ( स्वामी )= प्रभु । यहाँ यह शब्द 'राम राम', 'हरि हार’, ‘शिव शिव', 'दई' इत्यादि की भाँति खेदसूचक १. बिगुनियन ( २ ) । २. विपरीति ( २, ४) । ३. लखै ( २ ) । ४. लेतु ( १ ), खेत (४, ५ )। ५. उसास ( २, ४, ५)। ६. चुनत ( २, ४, ५) । ७. कपास ( २, ४, ५)।