नाई रोज़ तेल लगाने और बाल बनाने को पूछने लगा। कहार एक रोज़ अपने आप आकर दो घड़े पानी भर गया। बेहना बत्ती बनाने के लिये रुई की चार पिंडियाँ दे गया। चमार पाकर पूछ गया, ब्याह के जोड़े नरी बनाये या मामूली। चौकीदार पासी रोज़ आधीरात को हाँक लगाता हुआ समझा जाने लगा कि पूरी रखवाली कर रहा है। गङ्गावासी एक दिन दो जनेऊ दे गया। एक दिन भट्टजी आये और सीता स्वयंवर के कुछ कवित्त भूषण की अमृत ध्वनि सुना गये। गर्ज़ यह कि इस समय कोई नहीं चूका।
बिल्लेसुर का पासा पड़ा। ज़मीन्दार ने उनकी देहली पर पैर रक्खा । सारा गाँव टूट पड़ा। ज़मीन्दार गये थे, ब्याह हो रहा है, कम-से-कम दो रुपये बिल्लेसुर नज़र देंगे, फिर मदद के लिए पूछेंगे, कुछ इस तरह वसूल हो जायगा जैसे कानपुर से आटा-शकर मँगवायँगे तो बैल-गाड़ी के किराये के अलावा कुछ काट-कपट करा ही ली जा सकेगी। त्रिलोचन भी ज़मीन्दार के साथ थे, सोचा था, उनके पीछे पूरी ताक़त खर्च कर देंगे; कुछ हाथ लग ही जायेगा। त्रिलोचन को देखकर बिल्लेसुर ने निगाह बदली। जब भी त्रिलोचन तथा दूसरों ने ज़मीन्दार के समन्दर पर बरसने के लिये बिल्लेसुर को बहुत समझाया––"रिक्तपाणिर्न पश्येत राजानं देवतां गुरुम्." फिर भी बिल्लेसुर अपनी जगह से हिले नहीं, ज़मीन्दार के सम्मान में बैठे, दाँतों में तिनके-सा लिये रहे। कुछ देर बाद ज़मीन्दार मन मारकर उठ गये, त्रिलोचन पीछे लगे रहे। आगे बढ़कर अच्छी तरह कान भर दिये कि हुक्म भर की देर है। गाँव में दूसरे दिन से बिल्लेसुर की इज्ज़त चौगुनी हो गई। ज़मीन्दार के घर जाने का मतलब लोगों ने लगाया, बिल्लेसुर के हाथ कारूँ का खज़ाना लगा है। तरह-तरह