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त्रिलोचन को थोड़ी-सी पकड़ मिली। कहा, "हाँ, यह तो अच्छा विचार है। लेकिन तुम्हारे बैल तो हैं ही नहीं, किसानी कैसे करोगे?"

बिल्लेसुर पेच में पड़े। कहा, "इसीलिये तो कहा था कि अभी तक कुछ तै नहीं कर पाया।"

त्रिलोचन का पारा चढ़ना ही चाहता था, लेकिन पारा चढ़ने से खरी-खोटी सुनाकर अलग हो जाने के अलावा और कोई स्वार्थ न सधेगा, सोचकर मुश्किल से उन्होंने अपने को यथार्थ कहने से रोका, और बड़े धैर्य से कहा, "हमारे बैल ले लो।"

"फिर तुम क्या करोगे?

"हम और बड़ी गोई लेना चाहते हैं। लेकिन सौ रुपये लेंगे।"

बिल्लेसुर ने निश्चय किया, सौ रुपये ज़्यादा नहीं है। कहा, "अच्छा, कल बतलायेंगे।"

त्रिलोचन एक काम है, कहकर चले। मन में निश्चय हो गया कि सौ रुपये एकमुश्त देनेवाले बिल्लेसुर के पास पाँच-सात सौ रुपये ज़रूर होंगे। त्रिलोचन दूसरी जगह सलाह करने गये कि किस उपाय से वह रुपये निकाले जायँ।

बिल्लेसुर त्रिलोचन के जाने के साथ घर के भीतर गये और कुछ देर में तैयार होकर बाहर के लिये निकले। लोगों ने पूछा, कहाँ जाते हो बिल्लेसुर? बिल्लेसुर ने कहा, पटवारी के यहाँ।

शाम होते-होते लोगों ने देखा, तीन बड़ी-बड़ी गाभिन बकरियाँ लिये बिल्लेसुर एक आदमी के साथ आ रहे हैं। गाँव भर में हल्ला हो गया, बिल्लेसुर तीन बकरियाँ ले आये हैं। सबने एक-एक लम्बी साँस छोड़ी।