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'अरे, गायत्री तो जनेऊ होते वक़्त तुम सुन चुके हो।'

'मैं भूल गया हूँ। तुम्हारे पैर छूकर कहता हूँ। कल मैने सपना देखा है कि बाबा जगन्नाथ जी कहते हैं.........लेकिन कहूँगा तो सपना फलियायगा नहीं।'

स्वप्न की बात से सत्तीदीन की स्त्री रोमांञ्चित हुई। बिल्लेसुर बाज़ी मार ले गया, सोचा। पुकार कर कहा, 'बिल्लेसुर, पैर छोड़ दो। तुम्हें बाबा का सपना हुआ है, तो मैं कहती हूँ, जमादार गुरुमन्त्र देंगे। यहाँ आओ, अकेले में मुझसे बताओ कि क्या सपना देखा।'

बात पाकर बिल्लेसुर ने पैर छोड़ दिये। सत्तीदीन की स्त्री कोठरी की तरफ़ बढ़ीं। बिल्लेसुर साथ साथ गये। वहाँ जाकर कहा, 'मैं सोता था, सोता था, देखा भुस्स से एक आग जल उठी, उसमें तीन मुँह वाला एक आदमी बैठा था, उसने कहा, बिल्लेसुर, तू ग़रीब ब्राह्मण है, सताया हुआ है, लेकिन घबड़ा मन, तू जिसके साथ आया है, उनकी सेवा कर, उनसे गुरुमन्त्र ले ले, तू दूधों-पूतों फलेगा। फिर देखता हूँ तो कहीं कुछ नहीं।'

सत्तीदीन की स्त्री ने निश्चय किया, फल उल्टा हुआ। यह सपना दरअस्ल उन्हें होना था। कोई खता न हो गई हो। हर सोमवार बाबा के नाम घी की बत्ती देने का सङ्कल्प किया। फिर सत्तीदीन से मन्त्र दे देने के लिये कहा। सत्तीदीन ने कण्ठी, माला, मिठाई, अँगोछा आदि बाज़ार से ख़रीद लाने के लिये बिल्लेसुर से कहा। बिल्लेसुर गये, क्षण भर में ख़रीद लाये। सत्तीदीन ने गायत्री मंत्र से पुनर्वार बिल्लेसुर को दीक्षित किया।

बिल्लेसुर की श्रद्धालु आँखों का प्रभाव सत्तीदीन की स्त्री पर