पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/२३

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फोकट में जगन्नाथ जी के दर्शन होंगे, बिल्लेसुर के आनन्द का आरपार न रहा। उन्होंने छुट्टी मंजूर करा ली। अगले इतवार के दिन सत्तीदीन के सामान के रक्षक के रूप से जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिये सत्तीदीन और उनकी स्त्री के साथ रवाना हुए।

जिस तरह सत्तीदीन की स्त्री का विश्वास था कि जगन्नाथ जी की कृपा की दृष्टि पड़ते ही वे गर्भिणी हो जायँगी, उसी तरह बिल्लेसुर का विश्वास था कि सत्तीदीन की इच्छामात्र से उनकी नौकरी स्थायी हो जायगी, चाहे वे डेढ़ इंच की जगह बालिश्त भर छोटे पड़ें।

अपने विश्वास को फलीभूत करने का उपाय बिल्लेसुर रास्ते में सोचते गये।

पुरी पहुँचकर बहुत ख़ुश हुए। ऐसा दृश्य कानपुर से बर्दवान तक न देखा था। समन्दर का किनारा––बालू के दूह––देखकर बहुत खुश हुए, समुद्र देखकर जामे से बाहर हो गये। जगन्नाथ जी की स्मृति में बहुत से घोंघे समुद्र के किनारे से चुनकर रख लिये, कुछ छोटे छोटे शंख-से।

मार्कण्डेय, वटकृष्ण, चन्दनतालाब आदि प्रसिद्ध जगहें देखते फिरे। मन्दिर के अहाते में और छोटे छोटे मन्दिर हैं। एक एक देखते फिरे। एकादशी को एक जगह उल्टा टंगी देखकर हँसे। सत्तीदीन ने कहा 'बाबा के प्रताप से यहाँ एकादशी उल्टा टाँग दी गई हैं; यहाँ कोई एकादशी का व्रत नहीं कर सकता। बिल्लेसुर ने उन्हें भी हाथ जोड़कर प्रणाम किया। फिर सब लोग कलियुग की मूर्ति देखने गये। कलियुग अपनी बीबी को कन्धे पर बैठाये बाप को पैदल चला रहा है। सत्तीदीन की स्त्री ग़ौर से देखती