७. विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। मेरे याके चित्तमें बिगो दूसरी नाहिं ॥ सो विषहर बिषको मूलं तजैन जोपायनपरै । होतमीन के तूल बाजीगरको रागसुनि ॥ रागरीझ उनमान हिरनकहै हिरनीय सों। कहादीजिये दान यह काम या बधिकको ।। (हिरणीवचन) (हरिगीतिकाछन्द)सुनिनाहिं चित्त उमाहिकै अवगाहिगुण करलीजिये । सुखपायरीझ बनाय दोनों देह भिक्षा दीजिये। गुणग्राम बधिक सुजान आशिक पायके सुखपाय है ।मृगछाल हाल बिछायतापररागसुन्दरगायहै।।यह समुझिक मजबूत दोनों देहभिक्षादेत हैं। न समान तिनके पानधन मृगऊ यहै गति- लेतहैं ।। चितहत्तजाको नित्त जामें सो टरै नहिं अंगते । तन- त्यागहीं हित रागही सुरतें करैपुनिअंगते ॥ दो० देहदान दे बधिक को मखो मृगापरवीण । मेरी छालापै सदा मीत बजावहु बीण ॥ सो. मृगा रागवशहोहिं बधिकनसों विनती करें। पुनि तू मारै मोहिं अबकी तान सुनायदे ।। दंडक । श्रुतिको सुन्यो नगान सुपात्रको दियो न दान शत्रुकी करी न हानि छलबल धायकै । कियो न परायो काम रसना भज्यो न रामरसमें गहीन बाम हिय लिपटायकै ॥ विद्याकोकरो नभ्यास मांगनोगयो निरास वेणी पैकरोन बास एकोघरीजाय कै। बोधाने बखान कीन्हीं वृथा गुजरानी याते बानी पछितानी ऐसे डीलनमें पायकै॥ दो० गुजरकरत हैं सुघर नर नाद बेदसंयोग । बहुतकलह भोजन बहुत बहुसोवै शठलोग॥ (राजाबचन) हम मूरख सौबे रहैं तुम निश्चय परवीन । पर अब मेरे राज में विलमौ एकघरीन ॥
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