पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/९६

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा । हँ गायो अतिहि सुहायो बरी मसाले चारो ॥ माधोयोंदेख्यो अचरज लेख्यो पुनिघननाद बखानो।पलअंतरनाहीं दशौदि- शाही उमड़ मेघ बहरानो॥तबतियखिसियानी अतिहि रिसानी सारँग नाद कयोई । सुर सुनकरताको दिशदश ताको खुलिघ- नश्याम गयोई॥ सो. माधोबे परवान रीझोतियकी तानपै।। कीनउचितउनमान तरुणी पै जादूतरल ॥ छंदचौ. पुनिकरगहिबीना अचरजकीना बालविकल करि डारी। सुरतालनसानो राग भुलानो थर २ कांपी नारी ॥ यह भेदविमानो क्षितिपतिजानो गुसाचित्तमेंआनी। तीक्षण करभौ हैं द्विजकेसोहें बोल्योकरकसबानी ॥ वीणाकरलीने बदनमली ने अवहीं द्वारेबायो। हाँविप्रजानके प्रीतिमानके आदर सहित बुलायो ।। सिंहासनदीन्हों आदर कीन्हों जलजमाल पहिरा- है। येते परवारों सबै विचारों कररिक अधिकाई ॥ दो० क्षितिपति मतिही दे सकत मेरेआगेदान। तू अधिकारी करलई निच्छुकखय्योन्यान ।। येकहिये लहिकामजासर्वसदीन्ह्यों त्याग। भयो रंकते रंक फिर कौनरीअनुराग ॥ माधो बचन॥ अयेराजयारीझकी मोहिन दीजै भूल । चतुर हीनतेरीसभा जैसे मधुविन फूल । तुमकाहू देखीनहीं याकीकलाकमान । हौसाहसबलके नहीं बाड़ीदै गिरमान ॥ सो. चंचरीक चितचोर बैठो तियके कुचनपर। काटत कीन्होंजोर ताहिउड़ायो युक्तिकरि । उरकी मेटीपीर सुरऔगतिराखीदुयो ।