६० बिरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। भिचारिन को औगुणको गाहक विडंब उपचारसी । बोधा क- विआपनी अनैसीको सहैया को है पापीको सरीक परपीर को- निवारली । गरजी को गरजी निवाजकोगरीवन को ज्वारीको जमानदार को भिखारी को सिपारसी। दो. पढ़ि कवित्त विनती करी द्वार पौरिया पाहिं । कहौ कृपाकर जो हितू तो हमभीतर जाहिं ।। यो जबाब दिजको दयो छरी दार उनमान। गुसाहोहिं मोपर नृपति तुम्हें विदेशी जान । सो० छरीदारके बैन सुन माधो चुप हो रह्यो। अकबकात श्रुत नैन बधिकविवशखगजाल ज्यों ।। दो० बीणाचार सितार दै द्वादश बजै मृदंग। चार ताल षट्ताल मिल सजै पांच सुर संग। सो. माधोकर उनमान चोपदार सों यों कही। मजा न होत निदान मजलिस मनुज प्रवीन बिन ॥ दो० मिरदंगी पूरब मुखी चल्यो सम्हारैजात । ताको अँगुठा मोम को तातें ताल न सात ॥ नौतेराके बीच में नेवर कांकर हीन। करत ताल सुरभंगते रंग नसात प्रवीन । गुसा होत मुग्धानटी सुरकठोर बरजाय। सभा आँधरी जानके प्रगट न कहत रिसाय॥ छरीदार जाहिर करी महाराज परजाय । परचो पाय महराज ने द्विजको लियो बुलाय ॥ चौ. माधोको राजा बुलवायो । तुरतहि विष सभा में आयो। ऊभो भयो राय तिहि देखत । सभालोगसब अचरजलेखत ।। दंडक । पांवड़ी मुकुटखौर केसर लसत भाल मीनाकृति कुण्ड ल कपोलन पै छरहे | कुंदन चरन तन सुन्दर मनोज जनु बी- णा करलीन्हें पोला पावन में ठैरहे।लकुटी रंगीन प्रौप्रवीन मोढ़े पीतपट कमलवत धोती फूलहार छवि दैरहे । चंद्रवत आननबि
पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।