पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/८१

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ५३ हिये अघाई ॥ छायो विवेक संसार सब चक्र बाक मोदि- तरहत । सामर्थ्य शरदनर नारशोभाविवश मोहियदहत ॥ सो० पचतन बड़ तिल आध भोजन नित्तकरारतें। पलमें करत असाध पित्त कोतवाली करत ॥ मेघ बढे असमान माय दशहूं दिशा । छोड़त फोरतकान तिन्हें फोर मारतनृपति ।। शीतल मंद सुगंध त्रिविधबयाबहार युत। हौं न लहत अानंद पीनकुचा संयोग विन ।। दंडक । सुनहे प्रवीन पीर कौन जनैये जोपै देखत नानि. कट सलोनी नोनी धनको । ध्यानके धरत धड़ाको ऐसोलागो बिना प्यारी संयोग समझाऊँ कैसे मनको ॥ बोधा कवि भवन में कैसे हूं रह्यो न जाय बिरहदवागिते न जायो जाय बनको। शरदनिशा में चन्द निश्चर ऐसो ताकी चांदनी चुरैल सोचवाये लेत तनको॥ चौ आश्विनसुदिदशमीतिथिजवहीं बाँधोतजोमाधवातवहीं।। नगरलोग संबही पछिताने । बड़ी दोस्ती हमसों माने । पैन चलत खबर वह दीन्हीं। जड़मति उपदेशी की चीन्हीं ॥ सबरोनगर सराहत वोही । वहनिश्चय बालक निरमोही। दो० एकै त्रिय ऐसी कहें है वहसांचोगीत । अबला कौने वशकरी योगी काकेमीत ॥ चलत माधवा विपके सुवा चल्यो अकुलाय । तोबिन दिज या बटपै मोपै रहो न जाय ॥ चौ. चल्योजातयोंमाधोयोगी।बांधोतजिफिरभयो बियोगी॥ मनमें चल्यो बिसूरत येही। रहे मोर सबनगर सनेही । सवैया। आवतीती हिरनाक्षी इतै वा झकोर कै आंखें हियो- हरलेतती।चौंधा लगावत चन्दमुखी गजगामिन सोमगरूरीस मेतती॥बोधा बियोग करै सबको पिकबैनी कठोरहिये न सचेत ती। जानती पीर गरीबनकी अहे पीनकुचानहियो हरलेतती।।