पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/७५

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विरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। ४७ प्राण गये फिरनाश होतदेह अरु नेहको ॥ चौ० जेठमास नौमी तिथिजानो।कृष्णपक्ष द्विज कीनपयानो॥ पुहुपावती पुरी तजिमाधो। चलो जपतकामावरसाधो।। सो• वाला एक हजार सहससाथ जाके चलें । भाभी के अनुसार जो माधव बनतजि फिरें ॥ चौ० माफत परी जानपर येती । तजी न मगरूरी दिलसेती ॥ पल २ ध्यान मित्र को प्रावत। कहै वहै जोई कहि आवत ।। खगमृणादिलतिकालखिडोलत।कहियादोस्तहरीहरबोलत॥ द्रुम २ तर विलसत द्विजमावै । गाथापढ़िकर हियसोलावै ।। (गाथा) इति विरंचिमति मंद नाजानतनीत नोतं । भावदा विछुरैदं शिरसि में लिख्यते सोकिं ॥ चौ० बीनवजाय मृगनकोमोहत । तिनके नैनघरी लौंजोहत। देखि सेखि कारे बड़वारे। अनियारे रतनारे प्यारे । हेरन पैन मित्र की पावै । सधे कुरंग रंग सरसावै ।। शुकसों कहे नाकतूलैनी। पैन भाव तो जोरकहेनी॥ क्योंगुलाब छवि छावै एती। भावदी गुलतारीजेती ।। मने करतकलरव दुखदानी। जिनबोलै भावदी बानी॥ दो. फूलतुवाकुनि दाख में बनते गुजरैचैत । फौजदार के फिरतज्यों थानेरहतथनेत ॥ चौ० जोबनसदारहयो सुखदायक । सोवनभयो लाइबे लायक ॥ पूरवदिशा चल्यो बिजमाधो। कछुदिनगुजरेआयो बाँदो। इतिश्री माधवानल कामकन्दलाचरित्र भाषा विरहीसुभान सम्बादेनवमस्तरङ्गः प्रारण्यखंड ९ ॥ इश्कआतसी नाम तरङ्गप्रसंग। दशमस्तरंगप्रारम्भः॥ दो• सुन सुभान ग्रीषमतपन तियतजि चलत विदेश । --